Tuesday, July 01, 2008

खामोश मौत..


वो जो तङप भी नही पाते है
उनसे क्या पूछते हो मौत क्या है?
तङप कर जिनमे
सह लेने का साहस आ जाता हो,
उनसे क्या पूछते हो मौत क्या है?
मेरी साँस लेती हई लाश से पूछो
कि तडपन की शिकन को दाँतो से दाब कर
मुस्कुरा कर
यह कह देना "जहाँ रहो खुश रहो"
फिर एक गेहरी खामोश मौत मर जाना
कैसा होता है..

***राजीव रंजन प्रसाद
२८.०५.१९९७

10 comments:

Anonymous said...

Having fun reading of your blog.


berto xxx

Anonymous said...

Whoever owns this blog, I would like to say that he has a great idea of choosing a topic.

Anonymous said...

Thanks. Im Inspired again.

Anonymous said...

It could give you more facts.

Anonymous said...

To the author of this blog,I appreciate your effort in this topic.

शोभा said...

राजीव जी
असीम दर्द छिपाए हुए है यह कविता। बहुत सुन्दर लिखा है। बधाई स्वीकारें।

Anonymous said...

मेरी साँस लेती हई लाश से पूछो
कि तडपन की शिकन को दाँतो से दाब कर
मुस्कुरा कर
यह कह देना "जहाँ रहो खुश रहो"
bhut khub. likhate rhe.

mehek said...

कि तडपन की शिकन को दाँतो से दाब कर
मुस्कुरा कर
यह कह देना "जहाँ रहो खुश रहो"
फिर एक गेहरी खामोश मौत मर जाना
कैसा होता है..
bahut khub badhai

महेन said...

पाश जैसी शिद्दत और आग दिखी मुझे इन कुछ पंक्तियों में। छोटी और खूबसूरत।
शुभम।

Udan Tashtari said...

गहरी रचना-मगर इतनी मायूसी-क्यूँ भाई क्यूँ.