वो जो तङप भी नही पाते है
उनसे क्या पूछते हो मौत क्या है?
तङप कर जिनमे
उनसे क्या पूछते हो मौत क्या है?
तङप कर जिनमे
सह लेने का साहस आ जाता हो,
उनसे क्या पूछते हो मौत क्या है?
उनसे क्या पूछते हो मौत क्या है?
मेरी साँस लेती हई लाश से पूछो
कि तडपन की शिकन को दाँतो से दाब कर
मुस्कुरा कर
यह कह देना "जहाँ रहो खुश रहो"
फिर एक गेहरी खामोश मौत मर जाना
कैसा होता है..
कि तडपन की शिकन को दाँतो से दाब कर
मुस्कुरा कर
यह कह देना "जहाँ रहो खुश रहो"
फिर एक गेहरी खामोश मौत मर जाना
कैसा होता है..
***राजीव रंजन प्रसाद
२८.०५.१९९७
10 comments:
Having fun reading of your blog.
berto xxx
Whoever owns this blog, I would like to say that he has a great idea of choosing a topic.
Thanks. Im Inspired again.
It could give you more facts.
To the author of this blog,I appreciate your effort in this topic.
राजीव जी
असीम दर्द छिपाए हुए है यह कविता। बहुत सुन्दर लिखा है। बधाई स्वीकारें।
मेरी साँस लेती हई लाश से पूछो
कि तडपन की शिकन को दाँतो से दाब कर
मुस्कुरा कर
यह कह देना "जहाँ रहो खुश रहो"
bhut khub. likhate rhe.
कि तडपन की शिकन को दाँतो से दाब कर
मुस्कुरा कर
यह कह देना "जहाँ रहो खुश रहो"
फिर एक गेहरी खामोश मौत मर जाना
कैसा होता है..
bahut khub badhai
पाश जैसी शिद्दत और आग दिखी मुझे इन कुछ पंक्तियों में। छोटी और खूबसूरत।
शुभम।
गहरी रचना-मगर इतनी मायूसी-क्यूँ भाई क्यूँ.
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