कोमल श्वेत हाँथ पग मेरे, मैं सिमटी उस उदर अंधेरे
अभिमन्यु को चक्रव्यूह था, मुझको तू तू तेरे मेरे
माँ तूने तस्वीर निकाली, फिर की तय, टूटेगी डाली
मुझे लहू करने को बेबस दिल पत्थर कर गोली खा ली
अभिमन्यु को चक्रव्यूह था, मुझको तू तू तेरे मेरे
माँ तूने तस्वीर निकाली, फिर की तय, टूटेगी डाली
मुझे लहू करने को बेबस दिल पत्थर कर गोली खा ली
जा दूध में बतासा, हो भैया, करे तमासा, आह दिलासा
मैं होती बिटिया, गाली थी, ना हो बेचैन, मरौंगी
या मुरली मुरलीधर की, अधरा न धरी अधरा न धरौंगी
मैं बढती थी तो गडती थी, अफसोस रहा मैं मरी नहीं
भाई की आया, करमजली, मैं तितली या जलपरी नहीं
घर दरवाजों पर साँकल थे, पैरों की बेडी पायल थे
मैं तनहा थी, कमजोर नहीं, मैं बेबस थी पर डरी नहीं
भैया की पुस्तक पढती थी, था एकलव्य बन कर जीना
फिर धोना बुनना सीना मैं, वर कर दर से जो टरौंगी
या मुरली मुरलीधर की, अधरा न धरी अधरा न धरौंगी
पी पी करे पपीहा रोये, बिना कार पी चढे न घोडी
रात पिया पी घर आये, मोडा मुख फिर बहिंया मोडी
हिय मिलते जब, ससुर भरे घर, या धर नयना अंबर
तनहा ताने सुनती कहती, माँ यह कैसी किसमत मोरी
जीवन परबत, अंगना कारा, जलता सूरज, चुभता तारा
टूटी खटिया, हाँथ, दाँत रे, दरपन क्या सिंगार करौंगी।
या मुरली मुरलीधर की, अधरा न धरी अधरा न धरौंगी
नारी नारी चीख चीख कर संसद में बंदर नें बाँटा
इसकी सीटें, उसकी सीटें, मेरा तराजू उसका काँटा
एक विधेयक, सदियों लटके, चौराहे पर रोता पाया
नारी के हक की बातों को, नारी के जायों ने खाया
अंबर सुन लो फँट जाओगे, अगर गिरेबाँ पकडा मैने
यह इलाज कडुवा है जो, मैं ठान निबौरी, अगर फरौंगी
या मुरली मुरलीधर की, अधरा न धरी अधरा न धरौंगी।
*** राजीव रंजन प्रसाद
7.04.2008
5 comments:
Ahhha या मुरली मुरलीधर की, अधरा न धरी अधरा न धरौंगी। Good
kya baat hai
bahut sunder rachna
बहुत उमदा रचना है. बहुत गम्भीर मुद्दे पर गमभीर शब्दों में आपने रचना लिखी. जिस भाव में लिखी वह भी बहुत गम्भीर है.
नारी नारी चीख चीख कर संसद में बंदर नें बाँटा
इसकी सीटें, उसकी सीटें, मेरा तराजू उसका काँटा
एक विधेयक, सदियों लटके, चौराहे पर रोता पाया
नारी के हक की बातों को, नारी के जायों ने खाया
वास्तव मैं समाज बस बढ रहा है. बह रहा है एक परवाह में स्त्री के विकास के नाम पर उसकी इज्जत मान और उसके प्रती सम्मान कम ही हुआ है. देखा जाये तो स्त्री के साथ छल का दूसरा दौर शुरू हुआ है इन दिनों. रिजर्वेशन के ड्रामे का अंत क्या होगा ये भी सब देखेंगे. खैर आपकी रच्ना एक संवेद्ना को झकझोरने वाली रचना है.
राजीव जी
अति सुन्दर खूबसूरत । मज़ा आगया पढ़कर। पूरे भावावेग में लिखी गई रचना है। आपने बहुत कुछ जीवन्त कर दिया। इतनी सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए हृदय से बधाई।
एक अलग टेस्ट की अद्भुत रचना. बहुत उम्दा है. बधाई.
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आप हिन्दी में लिखते हैं. अच्छा लगता है. मेरी शुभकामनाऐं आपके साथ हैं इस निवेदन के साथ कि नये लोगों को जोड़ें, पुरानों को प्रोत्साहित करें-यही हिन्दी चिट्ठाजगत की सच्ची सेवा है.
एक नया हिन्दी चिट्ठा किसी नये व्यक्ति से भी शुरु करवायें और हिन्दी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें.
शुभकामनाऐं.
-समीर लाल
(उड़न तश्तरी)
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