केसरिया बालमवा..पधारो म्हारे देस...
आदम ढूंढो, आदिम पाओ
रक्त पिपासु, प्यास बुझाओ
मेरी माँगें, तेरी माँगें
खींचें इसकी उसकी टाँगें
मेरा परिचय, मेरी जाती
छलनी कर दो दूजी छाती
नेताजी का ले कर नारा
गुंडागर्दी धर्म हमारा
हमें रोकने की जुर्ररत में
खिंचवाने क्या केस?
पधारो म्हारे देस..
किसका ज्यादा चौडा सीना
मैं गुज्जर हूँ, वो है मीणा
दोनों मिल कर आग लगायें
रेलें रोकें बस सुलगायें
कितना अपना भाईचारा
मिलकर हमने बाग उजाडा
बीन जला दो, धुन यह किसकी
भैंस उसी की लाठी जिसकी
मरे बिचारे आम दिहाडी
गोली के आदेस
पधारो म्हारे देस..
ईंट ईंट कर घर बनवाओ
जा कर उसमें आग लगाओ
और अगर एसा कर पाओ
हिम्मत वालों देश जलाओ
अपनी पीडा ही पीडा है
भीतर यह कैसा कीडा है
अपनी भी देखो परछाई
निश्चित डर जाओगे भाई
बारूदों में रेत बदल दी
इसी काज के क्लेस
पधारो म्हारे देस...
जाग जाग शैतान जाग रे
आग आग हर ओर आग रे
जला देश परिवेश नाच रे
झूम झूम आल्हे को बाँच रे
इंसानों की मौत हो गयी
सोच सोच की सौत हो गयी
होली रक्त चिता दीवाली
गुलशन में उल्लू हर डाली
हँसी सुनों, हैं सभी भेडिये
इंसानों के भेस
पधारो म्हारे देस...
केसरिया बालमवा.........!!!
*** राजीव रंजन प्रसाद
8 comments:
राजस्थान की आग साफ सुलगती नजर आ रही है आपकी कविता में।
राजीव जी
ओज गुण से लबालब कविता के लिए बधाई। आपकी कविता कलम में बहुत ताकत है। पढ़कर सारे दृश्य जीवित हो गए। इतनी सुन्दर रचना के लिए बधाई।
आपकी कविता बहुत कुछ कह गयी, शब्दों से पुंज में दर्द को बताती हुई कविता है।
इंसानों की मौत हो गयी
सोच सोच की सौत हो गयी
होली रक्त चिता दीवाली
गुलशन में उल्लू हर डाली
हँसी सुनों, हैं सभी भेडिये
इंसानों के भेस
--राजीव जी, बहुत ही उम्दा रचना आज के घटनाक्रम पर.
bahut saarthak aur behtareen....
aaj ke halat apr.....sahi vyang kiya aapne...
इंसानों की मौत हो गयी
सोच सोच की सौत हो गयी
होली रक्त चिता दीवाली
गुलशन में उल्लू हर डाली
हँसी सुनों, हैं सभी भेडिये
इंसानों के भेस
पधारो म्हारे देस...
राजीव जी ...बहुत पीड़ा लिये है आपकी कविता
काश हम सभी समझ सकें एक दूसरे को...और अपने देश को....
पिछले साल जब गूजर आंदोलन भड़का था ...तो मैंने यह कविता लिखी थी....आप भी पढ़े..धन्यवाद
http://bhavnaye.blogspot.com/2007/06/blog-post.html
शाबाश ! यह हुई न कुछ बात !
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