Wednesday, July 25, 2007

मछली की आँखें




मेरी अमावस्या इस लिये है
कि मेरा चाँद
मेरी आँखों की बाहों में लिपट गया है
और कुछ दीख नहीं पडता
सिर्फ मछली की आँखें..

*** राजीव रंजन प्रसाद
२१.०२.१९९७

8 comments:

Mohinder56 said...

सुन्दर

आंखों ने खता की थी
आंखों को सजा देते
क्यूं दिन रात तडफ़ने की
है दिल ने सजा पायी

Udan Tashtari said...

बड़ा अलग सा बिम्ब है.

राकेश खंडेलवाल said...

अच्छी कल्पना है

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया!

Monika (Manya) said...

कहीं आंखों में ही खो गये.. बेहद अलग और खूबसूरत,..

Anupama said...

Gud imagination.....infact a unique one never read anything like tis before....

अभिषेक सागर said...

राजीव जी
बहुत अच्छी कविता है

-रचना सागर

Gaurav Shukla said...

चार पंक्तियों मे इतना कुछ जाने कैसे समेट लिया गया है

" मेरा चाँद
मेरी आँखों की बाहों में लिपट गया है"

अद्भुत

सस्नेह
गौरव शुक्ल