Friday, July 06, 2007

अपना ही कलेजा बुझा लिया..


मनाओ कि दिवाली है तुम्हारी
कि दिल जले..

इस दिलजले के दिल को जला कर की रोशनी
आँखों में कुछ धुवां सा गया
आँख नम हुई
मैनें जो कहा था तो बताओ ये सच है न
तुम मतलबी हो यार, बहुत मतलबी हो यार
मुझे फिर जला गये समूचा जो रो दिये
फिर रो के भी अपना ही कलेजा बुझा लिया..

*** राजीव रंजन प्रसाद
५.१०.१९९८

9 comments:

36solutions said...

बहूत खूब राजीव भाई, मां दंतेश्वरी को प्रणाम सहित

Udan Tashtari said...

एक दिलजले की दास्तान!!

सुनीता शानू said...

तुम मतलबी हो यार, बहुत मतलबी हो यार
मुझे फिर जला गये समूचा जो रो दिये
फिर रो के भी अपना ही कलेजा बुझा लिया
बहुत गहरी बात कह गये बातो-बातो मे राजीव जी...अच्छा लगा पढ़कर...


सुनीता(शानू)

Satyendra Prasad Srivastava said...

दर्द है। दर्द में भी कुछ बात है

Manish Kumar said...

फिर रो के भी अपना ही कलेजा बुझा लिया

अच्छा ख्याल लगा ये...

विनीत उत्पल said...

Namskar,
Can u give me details of bloggers or who interest in blogs in faridabad
vinit utpal
Hindustan
Faridabad

राजीव रंजन प्रसाद said...

विनीत उत्पल जी
मेरा जी-मेल पता है rajeevnhpc102@gmail.com और मोबाईल नं 9311433178 हम आपके संदर्भित विषय पर चर्चा कर सकते हैं।

*** राजीव रंजन प्रसाद

Gaurav Shukla said...

"तुम मतलबी हो यार, बहुत मतलबी हो यार
मुझे फिर जला गये समूचा जो रो दिये
फिर रो के भी अपना ही कलेजा बुझा लिया"

आपकी इस शैली ने ही मेरा परिचय करवाया था आपसे :-)
भाई जी, चार पंक्तियों में सब कुछ जाने कैसे कह लेते हो आप?
मौन ही रहने दें मुझे

सस्नेह
गौरव शुक्ल

Anupama said...

मुझे फिर जला गये समूचा जो रो दिये
फिर रो के भी अपना ही कलेजा बुझा लिया..

anoothi soch.....dil jalne par diwaali manaai gai hai...aisa to socha hi nahi tha maine....magar mast likha hai