Monday, April 30, 2007

वही रास्ता..


मुझे मौत ही की सजा मिले।
मुझे गम के फंदे में झोल कर,
तुझे मुस्कुराने की बात हो
मुझको कबूल फिर रात है।
मुझे उफ न करने का दम्भ है
मुझे नश्तरों से गिला नहीं
मुझे रात भर तेरी कैद थी
तू जो खिल गया
मुझे मिल गया
वही रास्ता जहाँ जन्नतें
वही ठौर जिसको कि मन्नतें
कभी सजदा करके न पा सकी.

*** राजीव रंजन प्रसाद

16.04.2007

9 comments:

Anonymous said...

तू जो खिल गया
मुझे मिल गया
वही रास्ता जहाँ जन्नतें
वही ठौर जिसको कि मन्नतें
कभी सजदा करके न पा सकी.

too gud rajeevji ji

शैलेश भारतवासी said...

मुझे उफ न करने का दम्भ है

मगर मुझे उफ़ करने का दम्भ है कि गुरु, क्या ज़ज्बातों से बँधी पंक्तियाँ हैं! राजीव जी, सुदंर कविता है।

शैलेश भारतवासी said...

मुझे उफ न करने का दम्भ है

मगर मुझे उफ़ करने का दम्भ है कि गुरु, क्या ज़ज्बातों से बँधी पंक्तियाँ हैं! राजीव जी, सुदंर कविता है।

रंजू भाटिया said...

मुझे नश्तरों से गिला नहीं
मुझे रात भर तेरी कैद थी
तू जो खिल गया
मुझे मिल गया

बहुत ही सुंदर लिखा है ..

देवेश वशिष्ठ ' खबरी ' said...

प्रणाम रंजन जी।

तुझे मुस्कुराने की बात हो
मुझको कबूल फिर रात है।

यहाँ प्राप्ति की कोशिश नहीं है।
तू खुश है तो मैं खुश हूँ वाली बात है
मुझे पसंद आयी ये बात।

तू जो खिल गया
मुझे मिल गया

ये सादगी कविता के छंद में भी और भाव में भी,
मुझे पसंद आयी ये बात।

वही ठौर जिसको कि मन्नतें
कभी सजदा करके न पा सकी

बिन मागे सब कुछ मिले माँगत मिलै न भीख।

वही ठौर जिसको कि मन्नतें
कभी सजदा करके न पा सकी

मुझे पसंद आयी ये बात।

देवेश वशिष्ठ 'खबरी'

ghughutibasuti said...

बहुत सुन्दर !
घुघूती बासूती

vinay kumar said...

Rajiv ji!
apki baht kavita padhi hai...magar this one is heart touching...

Prabhakar Pandey said...

सुंदरतम रचना ।

Mohinder56 said...

रंजन जी शरारत के तौर पर आप की कविता से छेड छाड कर दी है....बुरा मत मानियेगा.. आप की कविता के भाव ने मुझे भ्रमित कर दिया था ... हा हा इसलिये मैने अपने हिसाब से कविता का रूप बदल दिया....कैसा लगा ?


मुझे मौत ही की सजा मिले।
फ़ंदा गले में गम का डाल कर
गर तेरे मुस्कराने की बात है
मुझे अंधेरी रात भी कबूल है
मै उफ़्फ़ न करने की जिद्द में हूं
मुझे नश्तरों से गिला नहीं
मेरी रात भर की कैद से
तू जो खिल गया
मुझे सब मिल गया
वही जन्नतों का रास्ता
वही ठौर जिसकी की मन्नतें
जिसे सजदों से भी न पा सकें