Sunday, April 15, 2007

शक

तुम याद आये और हम खामोश हो गये
पलकों पे रात उतरी, शबनम से रो गये

सौ बार कत्ल हो कर जीना था फिर भी मुमकिन
अश्कों के सौ समंदर पीना था फिर भी मुमकिन
फटते ज़िगर में अंबर आ कर ठहर गया है
टुकडे बटोर कर दिल सीना था फिर भी मुमकिन

नफरत नें तेरे दिल को पत्थर बना दिया है
सपनों नें तेरी आँखें देखीं की सो गये
पलकों पे रात उतरी, शबनम से रो गये

मेरी नींद में तुम्हारा आना भी अब सज़ा है
करवट बदलना नींद न आना भी अब सज़ा है
जीना ये कैसा जीना, मुर्दा ये जिस्म ये मन
सांसों का आना, थमना, जाना भी अब सज़ा है

तेरा ही शक, तेरा ही हर ज़ख्म तेरे दिल पर
तुम अपने ही सीनें में खुद खार बो गये
पलकों पे रात उतरी, शबनम से रो गये

तुम चैन न पाओगे, मुझको यकीं है ए दिल
तेरे आँसुओं की कश्ती, ढूंढा करेगी साहिल
मुझे जीते जी जला कर तुमनें ये क्या किया है
मेरी राख तेरे माथे का सच है मेरी मंज़िल

खुद को न यूं बिखेरो, मेरी जान, मेरी धडकन
सच दिल से पूछ लो दिल, तुम तुम से खो गये
पलकों पे रात उतरी, शबनम से रो गये

***राजीव रंजन प्रसाद
७.०१.१९९५

12 comments:

Anonymous said...

जीना ये कैसा जीना, मुर्दा ये जिस्म ये मन
सांसों का आना, थमना, जाना भी अब सज़ा है


:) अच्छी स्थिति है राजीवजी...

ghughutibasuti said...

अच्छा लिखा है । लिखते रहिये ।
घुघूती बासूती

जयप्रकाश मानस said...

जारी रखिए इसी तरह

सुनीता शानू said...
This comment has been removed by the author.
सुनीता शानू said...

मेरी नींद में तुम्हारा आना भी अब सज़ा है
करवट बदलना नींद न आना भी अब सज़ा है
जीना ये कैसा जीना, मुर्दा ये जिस्म ये मन
सांसों का आना, थमना, जाना भी अब सज़ा है
सबसे अच्छी पन्क्तियाँ है,..कुछ ही शब्दो में सभी कुछ लिखा है आपने
सुनिता(शानू)

ravishndtv said...

राजीव क्या बात है । मोहब्बत होती ही है ऐसी । प्रेम हो जाए तो दुनिया दान कर दीजिएगा ।

Mohinder56 said...

भई वाह वाह र‍ंजन जी, आप रंग में आ गये हैं

योगेश समदर्शी said...

बहुत खूब राजीव भाई.
बडे सुंदर भाव की कविता है
तेरा ही शक, तेरा ही हर ज़ख्म तेरे दिल पर
तुम अपने ही सीनें में खुद खार बो गये
पलकों पे रात उतरी, शबनम से रो गये

उत्तम तरीके से एक संजीदा बात कहने का हुनर है आपके पास
बधाई

देवेश वशिष्ठ ' खबरी ' said...

वैसे तो अच्छा लिखा है,पर आपकी सतही रचनाऐं पडने की आदत हो गयी है।
हिन्दी युग्म के परिणाम कब आ रहे हैं सर।
बेसब्री से इंतजार है।

देवेश वशिष्ठ ' खबरी ' said...

वैसे तो अच्छा लिखा है , पर आपकी सतही रचनाऐं पडने की आदत हो गयी है।
हिन्दी युग्म के परिणाम कब आ रहे हैं सर।
बेसब्री से इंतजार है।

Anonymous said...

तुम याद आये और हम खामोश हो गये
पलकों पे रात उतरी, शबनम से रो गये

बहुत खूबसूरत शेर,
बहुत खूबसूरत गज़ल,
वाह.......
रंजन जी
बधाई
गीता

रंजू भाटिया said...

मेरी नींद में तुम्हारा आना भी अब सज़ा है
करवट बदलना नींद न आना भी अब सज़ा है
जीना ये कैसा जीना, मुर्दा ये जिस्म ये मन
सांसों का आना, थमना, जाना भी अब सज़ा है

तेरा ही शक, तेरा ही हर ज़ख्म तेरे दिल पर
तुम अपने ही सीनें में खुद खार बो गये
पलकों पे रात उतरी, शबनम से रो गये


kai baar laga ki aap mere dil ki baat likh rahe hain ..bahu khubsuart hai ....