सफर - राजीव रंजन प्रसाद
Monday, November 20, 2006
उधार की ज़िन्दगी
मैने सोचा न था
कि सिर्फे एक स्वप्न मुझे
एक आसमान और अमावस की
अँतहीन रात भेट करेगा
और मेरे कँधे पर
अहसान भरा हाथ रख कर कहेगा
लो आज से उधार की ज़िन्दगी जीयो तुम......
***राजीव रंजन प्रसाद
2 comments:
Anonymous said...
yar aap to great ho...kya kavita karate ho....
10:54 PM
Rachna Singh
said...
nice poem nice dipiction
9:17 PM
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
2 comments:
yar aap to great ho...kya kavita karate ho....
nice poem nice dipiction
Post a Comment