Monday, November 20, 2006

उधार की ज़िन्दगी

मैने सोचा न था
कि सिर्फे एक स्वप्न मुझे
एक आसमान और अमावस की
अँतहीन रात भेट करेगा
और मेरे कँधे पर
अहसान भरा हाथ रख कर कहेगा
लो आज से उधार की ज़िन्दगी जीयो तुम......

***राजीव रंजन प्रसाद

2 comments:

Anonymous said...

yar aap to great ho...kya kavita karate ho....

Rachna Singh said...

nice poem nice dipiction