Thursday, November 30, 2006

गज़ल

जिस राह पर चलो तुम, मेरी भी राह हो
पग-पग में गुल बिछे हों, पेडों की छांह हो..

इस तरह मुझसे यार, निगाहें चुराये है
जैसे मेरी निगाह, उसी की निगाह हो..

दाँतों से लब दबाये, जो होठों से गुल छुवे
जैसे मेरा गुनाह, उसी का गुनाह हो..

बाहों में भर लिया तो वो आँखें नहीं खुली
जैसे मेरी पनाह, उसी की पनाह हो..

राजीव डूबता हूँ, तो वो भी पिघल गया
जैसे मेरा बहाव उसी का बहाव हो..

*** राजीव रंजन प्रसाद
१२.११.२०००

1 comment:

Anonymous said...

Dhanyavaad aapka Rajiv ji,apni anmol rachnao ko sangrahit karne ke liye.