Monday, November 20, 2006

मै बिखरता जाता हूँ

मैने फूटा हुआ आईना जोडने कि कोशिश मे
ज़िन्दगी बटोर ली
दर्द की लेई बना कर
सब कुछ जोडता जाता हूँ......

वक्त के साथ कडुवाहट जुडती है
कडुवाहट के साथ अश्क जुडॅते है,
अश्क के साथ टीसे जुडती है
टीसो के साथ आहे जुडती है
आहो के साथ कसक जुडती है
कसक के साथ बहुत से सपने बटोर कर जोडता हूँ..
और उनके साथ तुम्हे जोडता हूँ

ज़िन्दगी जुडती जाती है,
मै बिखरता जाता हूँ...

***राजीव रंजन प्रसाद

2 comments:

अभिषेक सागर said...

रजीव जी
बहुत सुन्दर कविता है
देख कर मन खुश हो गया
अभिषेक

Vibha tiwari said...

मै बिखरता जाता हूँ

मैने फूटा हुआ आईना जोडने कि कोशिश मे
ज़िन्दगी बटोर ली
दर्द की लेई बना कर
सब कुछ जोडता जाता हूँ......

वक्त के साथ कडुवाहट जुडती है
कडुवाहट के साथ अश्क जुडॅते है,
अश्क के साथ टीसे जुडती है
टीसो के साथ आहे जुडती है
आहो के साथ कसक जुडती है
कसक के साथ बहुत से सपने बटोर कर जोडता हूँ..
और उनके साथ तुम्हे जोडता हूँ

ज़िन्दगी जुडती जाती है,
मै बिखरता जाता हूँ...

Ab kya kahoon Rajeevji..
bas wah nikal rahi hai..aur kuch nahin,,

likhte rahiye