Tuesday, August 08, 2017

गोलकुण्डा की शह पर भेजी विद्रोह (बस्तर: अनकही-अनजानी कहानियाँ, भाग – 51)


इतिहास को जनश्रुतियों और लोकगीतों से भी खुरच कर निकाला जा सकता है। विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा के दौरान पोटानार (जगदलपुर) के ग्रामीण रथ के आगे नाचते गाते चलते हैं तथा अनेक ऐसे गीत गाते हैं जिनमे ऐतिहासिकता के पुट हैं। महाराजा प्रवीरचन्द्र भंजदेव अपनी कृति लौहण्डीगुडा तरंगिणी में इस अवसर पर गाये जाने वाले चूडामन गीत का उल्लेख करते है। यह गीत एक कथा पर आधारित है जो बस्तर में राजा वीरसिंह देव (1654-1680 ई.) के शासन समय को प्रस्तुत करता है। अपने दरबार में राजा वीरसिंह, दीवान चूडामन से प्रश्न करते हैं कि क्या राज्य के अंदर की सभी जमीदारियाँ मेरे शासन के प्रति वफादार हैं?  दीवान उत्तर देते हैं कि भेजी जमीदारी को छोड कर अन्य सभी जमीदार राज्य शासन के लिये प्रतिबद्ध हैं। राजा को यह बात नागवार गुजरती है और वे भेजी के जमीदार का दमन करने के लिये दीवान को सेना ले कर जाने का आदेश देते हैं। इस कहानी में मोड़ तब आता है जब भेजी के निवासी जगराज और मतराज नाम के दो भाई चतुराई से सेना में प्रवेश कर जाते हैं तथा चूडामन का विश्वास अर्जित कर लेते हैं। वे बाध्य करते हैं कि वन्य मार्ग में उनके मनचाहे तथा पूर्वनियोजित स्थान पर शिविर लगाया जाये। शिविर लगाया जाता है जिसपर रात में भेजी के सैनिक हमला कर देते हैं। अफरातफरी का वातावरण निर्मित हो जाता है तथा राजा की सेना को बाध्य हो कर पीछे हटना पडता है। 

इस गीत में अंतर्निहित कहानी को तत्कालीन राजनैतिक परिस्थितियों के सामने रख कर देखना चाहिये। भेजी का विद्रोह वस्तुत: गोलकुण्डा के कुतुबशाही सल्तनत की शह पर था। गोलकुण्डा, जो भेजी से लगा हुआ बड़ा और शक्तिशाली राज्य था उसे भौगोलिक रूप से सुरक्षित बस्तर में अपनी पैठ स्थापित करने के लिये भेजी के जमीदार को प्रभाव में ले कर उकसाना उचित लगा। यद्यपि इस विद्रोह का दमन कर दिया गया। इसके पश्चात से भेजी जमीदारी हमेशा बस्तर राज्य का हिस्सा बनी रही।  

- राजीव रंजन प्रसाद

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