Thursday, August 03, 2017

स्त्रीराज्य बस्तर और महारानी प्रमिला (बस्तर: अनकही-अनजानी कहानियाँ, भाग – 47)


महाभारत युद्ध की समाप्ति के पश्चात युधिष्ठिर ने जब अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा छोड़ा था, तब उस घोड़े की रक्षा में स्वयं अर्जुन सेना के साथ चले थे। दक्षिण की ओर चलते चलते युधिष्ठिर के अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा “स्त्री राज्य” में पहुँच गया। - “उवाच ताम महावीरान वयं स्त्रीमण्डले स्थिता:” (जैमिनी पुराण)। स्त्री राज्य (कांतार) की शासिका का नाम प्रमिला था। उल्लेखों से ज्ञात होता है वह बड़ी वीरांगना थी। प्रमिला देवी के आदेश से अश्वमेध यज्ञ के उस घोड़े को बाँध कर रख लिया गया। घोड़े को छुड़ाने के लिये अर्जुन ने रानी प्रमिला तथा उनकी सेना से घनघोर युद्ध किया; किन्तु आश्चर्य कि अर्जुन की सेना लगातार हारती चली गयी। स्त्रियाँ युद्ध कर रही थीं इसका अर्थ यह नहीं कि वे साधन सम्पन्न नहीं थी जैमिनी पुराण से ही यह उल्लेख देखिये कि किस तरह स्त्रियाँ रथों और हाँथियों पर सवार हो कर युद्धरत थीं – “रथमारुद्य नारीणाम लक्षम च पारित: स्थितम। गजकुम्भस्थितानाम हि लक्षेणापि वृता बभौ॥” इसके बाद युद्ध का जो वर्णन है वह प्रमिला का रणकौशल बयान करता है। प्रमिला ने अपने वाणों से अर्जुन को घायल कर दिया। अब अर्जुन ने छ: वाण छोड़े जिन्हें प्रमिला ने नष्ट कर दिया। विवश हो कर अर्जुन को ‘मोहनास्त्र’ का प्रयोग करना पड़ा जिसे प्रमिला ने अपने तीन सधे हुए वाणों से काट दिया। अब प्रमिला अर्जुन को ललकारते हुए बोली – “मूर्ख! तुझे इस छोटी सी लड़ाई में भी दिव्यास्त्रों का अपव्यय करना पड़ गया” –प्रमीला मोहनास्त्रं तत सगुणम सायकैस्त्रिभि:। छित्वा प्राहार्जुनं मूढ़! मोहनास्त्रम न भाति ते॥  इस उलाहने ने अर्जुन के भीतर ग्लानि भर दी। अब अर्जुन ने रानी प्रमिला के समक्ष विनम्रता का परिचय दिया एवं संधि कर ली। इसके बाद ही यज्ञ के घोड़े को मुक्त किया गया। 

- राजीव रंजन प्रसाद

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