Thursday, December 12, 2013

नोटा ने कईयों के अरमानो को लूटा – संदर्भ बस्तर

बहुत हद तक यह लग रहा था कि बस्तर इस बार भारतीय जनता पार्टी के लिये विपरीत परिणाम देने वसला है। जानकारों ने कोंटा और दंतेवाड़ा पर भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी के पक्ष में अपने अनुमान (एग्जिट पोल) व्यक्त किये थे जबकि यह माना जा रहा था कि सात सीट कॉग्रेस को, तीन भाजपा और दो कम्युनिष्ट पार्टियों को मिलेंगे। परिणाम चार सीट भाजपा तथा आठ कॉग्रेस के पक्ष मे था। वामपंथी प्रत्याशियों की करारी हार यह बताती है कि बंदूख के साये से यदि वे बाहर न आये तो उनकी जमीनी लडाईयाँ भी असरकारक नहीं होंगी। सभी विश्लेषकों ने महेन्द्र कर्मा फैक्टर को बहुत हल्के में लिया और देवती कर्मा को कम कर के आंका गया। यह स्पष्ट है कि बस्तर में महेन्द्र कर्मा के प्रति सहानुभूति थी दंतेवाड़ा विधाससभा सीट पर 77% मतदान के रूप में आदिवासियों ने अभिव्यक्त भी कर दी। यह इतना बड़ा मतप्रतिशत है जितना कि देश के सभ्यतम माने जाने वाले क्षेत्रों में वोट भी नहीं पड़ते।

आज बात करते हैं नोटा पर। पूरे छत्तीसगढ में 3% लोगों ने नोटा का बटन दबाया और किसी भी पार्टी के पक्ष में मतदान नहीं किया। यह इतना बड़ा वोटों का हिस्सा था जिसने निश्चित ही कहीं कॉग्रेस का गणित बिगाड़ा तो कहीं भाजपा का। आश्चर्य की बात यह कि देर शाम तक नोटा के जो आंकडे बस्तर की बारह सीटों में सामने आये वह बताते हैं कि यह दोनो ही राजनीतिक पार्टियों के लिये खतरे की घंटी है और बहुतायत आदिवासी जनता ने लोकतंत्र पर तो भरोसा दिखाया किंतु प्रत्याशियों को नकार दिया। यदि नोटा मे पडे मत प्रत्याशियों के साथ जुडे होते तो परिणामों में और भी उठापटक देखी जा सकती थी। कांकेर (5208 मत), कोण्डागाँव (6773 मत), भानुप्रतापपुर (5680 मत), केशकाल (8381 मत), नारायणपुर (6731 मत), जगदलपुर (3469 मत), चित्रकोट (10848 मत), अंतागढ (4710 मत), बस्तर (5529 मत), दंतेवाडा (9677 मत), कोण्टा (4001 मत), बीजापुर (7179 मत) में नोटा का बटन बहुत अच्छी मात्रा में दबाया गया। इसका अर्थ यह है कि बस्तर में नोटा के लिये न्यूनतम 3469 मत (जगदलपुर) से ले कर अधिकतम 10848 मत (चित्रकोट) प्राप्त हुए। मतप्रतिशत के हिसाब से अधिकतम बीजापुर मे 10.15% मतदाताओं ने अपने 7179% मतो का प्रयोग नोटा के रूप में किया। अनेक प्रत्याशियों की जीत का अंतर भी नोटा में पडे मतों से कम था (नोट: अंतिम आंकडे अभी विश्लेषित किये जाने हैं।)। नोटा यह बताता है कि बस्तर का जागरूक मतदाता यह जानता है कि उसे किसको वोट देना है और अगर किसी को भी नहीं देना तो भी लोकतंत्र को बचाने का अपना दायित्व उसने निर्वहन किया है; इस तरह प्रत्याशियों से नाराजगी भी दिखाई गयी और नक्सलियों को अंगूठा भी।

-राजीव रंजन प्रसाद 


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