Sunday, July 13, 2008

मै, नींद, रात और चांद

रात और चांद का एक रिश्ता है

नींद और चांद का एक रिश्ता है

मेरा और चांद का एक रिश्ता है


मै, नींद, रात और चांद

जब इकट्ठे होते हैं

महफिलें सजती हैं

और ज़िन्दगी जाग जाती है..


*** राजीव रंजन प्रसाद

8 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

अति सुन्दर!

मोहन वशिष्‍ठ said...

बहुत ही सुंदर अभिव्‍यक्ति बधाई हो आपको राजीव जी

Anonymous said...

Ragjeev ji, bhut sundar. likhate rhe.

Dr. Chandra Kumar Jain said...

जागती हुई, जगाती हुई सुंदर रचना.
सरोकार की मिसाल भी.
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बधाई
डा.चन्द्रकुमार जैन

शोभा said...

मै, नींद, रात और चांद

जब इकट्ठे होते हैं

महफिलें सजती हैं

और ज़िन्दगी जाग जाती है..
अच्छा लिखा है।

Rajesh Roshan said...

अलग नजरिये से पेश किया अपने आपको चाँद और रात के साथ...खुबसूरत...

नीरज गोस्वामी said...

राजीव जी
बहुत दिनों बाद नजर आए लेकिन आप की इस रचना ने सारे गिले शिकवे दूर कर दिए...संवेदनाओं का जो संसार शब्दों से आप रचते हैं वो कमाल का होता है...बधाई
नीरज

vipinkizindagi said...

सुन्दर