सोचो जानम..
सोचो मेरा साथ
और कुछ सपने देखो
आँगन सोचो, जिसमें तुलसी का पौधा हो
जिसके आगे दीप जला कर
सूरज को तुम जगा रही हो
और ज़ुल्फ का सारा सावन
मेरे चेहरे पर बरसा कर कहा करोगी
चलो उठो ‘जी’, सुबह हो गयी
और चाय की प्याली मेरे सिरहाने रख
मेरे बिलकुल पास बैठ कर
कोई एसी चुहल करोगी
कि बरबस ही आँखें खोलूं
भरी भोर में चाँद देख लूँ...
सोचो जानम
भारी कोई बनारस वाली साडी पहने
और गाल तक झूम रहे कानों के गहने
और कोहनियों तक काँच की चूडी पहने
छम छम की पाजेब पहन कर, दबे पाँव तुम
आ कर मेरी पलकें ढाँपे यह पूछोगी
बतलाओ कैसी लगती हूँ?
और तुम्हारी बाँह थाम कर आँखों का आईना दूँगा
तुम शरमा कर दूर हटोगी
और हाँथ की कोई चूडी, मेरे हाँथों से टकरा कर
टूटेगी और गिर जायेगी
अब कि आँखों में ढेर सा गुस्सा भर कर
तुम जो मेरी आँखों में देखोगी
छुई-मुई सी हो जाओगी...
और कमर में साडी का ही पल्लू खोंचे
बेलन हाँथों में ले कर
मुझे रसोई ना आने की कडी नसीहत दे कर
तुम आँटे को थाली में डालोगी
मैं तुम्हे परेशां करने की नीयत रख कर
एक हाँथ से कमर तुम्हारी थाम
आँटे में पानी इतना डाल दूंगा, गीला हो जायेगा
मुझसे छूटने की नाकाम कोशिश कर
पानी में और आँटा डाल लेई बना लोगी
और चकले पर रख कर उसे
उस पर बेलन रख कर
और बेलन पर अपने हाँथ रख
उन हाँथों पर मेरा हाँथ पा कर भी
बेलोगी कि रोटी बन ही जाये
दिल बन जायेगा..
मेरी बेतरतीब चीजें सवाँर कर
और फिर फिर उसे बेतरतीब ही पा कर
झल्लाओगी
बडी बडी आँखें इस तरह दिखाओगी
कि बस अब काट ही खाओगी
मुझे दफ्तर भेज कर ही तुम्हें चैन आया करेगा
और शाम तुम्हारी बेकरार आँखें
बिलकुल दरवाजे पर होंगी
मेरे आते ही लड पडोगी रोज़ रोज़
कि देर से घर आना कोई अच्छी बात नहीं है
मैं चाय पी चुकने तक
सुनूंगा तुम्हारी सारी बक-बक
और फिर/तुम्हारे चुप के लिये
तुम्हें अपने करीब खींच कर
होठ सी दूंगा... दिन बेहद खूबसूरत होंगे
और रेशमी रातें जानम
सोचो और ज़िन्दगी सोचो
सोचो वह दिन भी आयेगा
जब सारा आराम तुम्हें दे
सारी जिम्मेदारी बाँटूंगा
मेरी हालत पर हँस हँस कर
छोटे छोटे मोजे स्वेटर
रंग बिरंगे से बुन बिन कर
बार बार सपनों में जा कर, यह सोचोगी
किस पर जायेगी
और निशानी मेरे प्यार की कैसी होगी...
सपनों से मत भागो चाँद
अंतहीन तुम सपने देखो
आओ जी लें एक ज़िन्दगी
सपनों में ही दुनियाँ कर लें
तुम मेरी आँखों में बैठो
खो जायें हम अंतहीन में...
***राजीव रंजन प्रसाद
17 comments:
वाह बहुत खूब राजीव जी ...आज का दिन भी ख़ास है और यह कविता भी ख़ास है ...बहुत ही सुंदर ..शादी की सालगिरह की बहुत बहुत बधाई आप दोनों को ..:)
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति.. शादी की सालगिरह की बहुत बहुत बधाई.. ये तो बताइए की कितने साल हुए है..
बहुत ख़ूबसूरत थी ये कविता.. बिल्कुल किसी ताजे खिले फूल के जैसे..
वर्षगाँठ की शुभकामनाये..
chintamराजीव जी, हार्दिक शुभकामनाएँ ! ऐसे ही लिखते रहिए। और विवाह की वर्षगाँठ मनाते रहिए।
घुघूती बासूती
देर से सही... शादी की सालगिरह की मुबारक बाद यह जज्वात और साथ बना रहे...सुन्दर चित्र और रचना के लिये बधाई
सुंदर!!
हमारी भी बधाई व शुभकामनाएं
बहुत सुंदर. शादी की सालगिरह की शुभकामनाएं. सुंदर सोच, सुंदर पोस्ट. लिखते रहें.
शुभकामनाएँ और बधाई युगल को।
badhai....
shadi ki salgirah ke liye bhi aur ek khubsurat kavita ke liye bhi....
चित्र सुन्दर हैं। शादी के सालगिरह की बधाई।
शादी की सालगिरह की बहुत बहुत बधाई एवं अनेकों शुभकामनाऐं. कविता बढ़िया है.
मन गंगाजल ह्रदय एक दर्पण होता है
जीवन का हर गीत प्रीत अर्पण होता है
सफ़र भले किता लंबा होले कविता का
प्रथम गीत संपूर्ण समर्पण ही होता है
dil ki baat bahut hi khubsurat andaz se bayan ki hai,its simply awesome,nelated happy annversery,god bless both of u.
its belated happy annversery,galti se nelated ho gaya.sorry
प्रियवरं, बहुत बहुत बधाई. इसी जीवन्तता के साथ जुग जुग रहे सलामत जोड़ी.
अति सुंदर, श्रृंगार भाव पोषित एवम् प्रेम रस से पोषित रचना के रचनाकार को कोटिशः साधुवाद।
बहुत ही सुंदर ।
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