ल्हासा लाल हो गया है
साम्यवाद नें
खीसें निपोड कर कहा है
’धम्मम शरणम गच्छामि’
और पकड पकड कर तिब्बतियों के
फोडे जा रहे हैं सर
कील लगे बूटों के सेलूट
खामोश होती गलियों, सडकों और मठों पर
हुंकार रहे हैं – लाल सलाम।
अफ़ज़लों को पोसने वाले
इस देश की सधी प्रतिक्रिया है
दूसरों के फटे में अपनी टाँग क्योंकर?
वैसे भी यहाँ आज़ादी का अर्थ आखिर
दीवारों पर पिच्च से थूकना
या कि सडकों पर
अनबुझे सिगरेट के ठुड्डे फेंकना ही तो है?
फिर सरकार की बैसाखियों का रंग लाल है
लेनिन के अंधे को लाल-लाल दिखता है
मजबूरी है भैया
जय गाँधी बाबा की।
साम्यवाद नें
खीसें निपोड कर कहा है
’धम्मम शरणम गच्छामि’
और पकड पकड कर तिब्बतियों के
फोडे जा रहे हैं सर
कील लगे बूटों के सेलूट
खामोश होती गलियों, सडकों और मठों पर
हुंकार रहे हैं – लाल सलाम।
अफ़ज़लों को पोसने वाले
इस देश की सधी प्रतिक्रिया है
दूसरों के फटे में अपनी टाँग क्योंकर?
वैसे भी यहाँ आज़ादी का अर्थ आखिर
दीवारों पर पिच्च से थूकना
या कि सडकों पर
अनबुझे सिगरेट के ठुड्डे फेंकना ही तो है?
फिर सरकार की बैसाखियों का रंग लाल है
लेनिन के अंधे को लाल-लाल दिखता है
मजबूरी है भैया
जय गाँधी बाबा की।
घुप्प अंधकार में
जुगनू की चुनौती
कुचल तो दी जायेगी, तय है
और मेरी नपुंसक कलम
आवाज़ नहीं बन सकती, जानता हूँ।
दूर बहरा कर देने की हद तक
पीटा जा रहा है ढोल
नुक्कड में क्रांति के ठेकेदार जुटे हैं
देखो भीड नें ताली बजाई
समाजवाद बबुआ धीरे धीरे आई...।
जुगनू की चुनौती
कुचल तो दी जायेगी, तय है
और मेरी नपुंसक कलम
आवाज़ नहीं बन सकती, जानता हूँ।
दूर बहरा कर देने की हद तक
पीटा जा रहा है ढोल
नुक्कड में क्रांति के ठेकेदार जुटे हैं
देखो भीड नें ताली बजाई
समाजवाद बबुआ धीरे धीरे आई...।
*** राजीव रंजन प्रसाद
16.03.2008
16.03.2008
2 comments:
समाजवाद बबुआ धीरे धीरे आई...।
--मगर आई जरुर-विश्वास बनाये रहा!!
Dear Rajiv,
Aap ki batoo se lagta hain ya to pakistan doshi hain ya to communist. Aap chijo ko neutral hokar bhi dekhe.
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