Wednesday, May 14, 2008
जयपुर में मौत के तांडव पर एक श्रद्धांजलि - मर गये आदमी, एक खबर बन गयी
मर गये आदमी, एक खबर बन गयी
जल गयी लाश थी कोई पत्थर हुआ
क्या संभाले उसे, क्या करेंगे दुआ
ज़िंदगी आँख में रुक गयी काँच बन
और हाँथों की हर फूटती चूडियाँ
इसमें भी है खबर, कैमरे की नज़र
चीखती अधमरी की तरफ तन गयी
मर गये आदमी, एक खबर बन गयी
जिसने फोडा था बम उसका ईमान क्या
उफ पिशाचों से बदतर वो हैवान था
हो कि हूजी, सिमि या कि लश्कर कोई
कैसे खुफिया हैं क्यों तंत्र अंजान था
लोकशाही में आलू तो मँहगा हुआ
आदमी की रही कोई कीमत नहीं
मर गये आदमी, एक खबर बन गयी
वो पहन कर के खादी निकल आयेंगे
उंगलियों को उठा कर के चिल्लायेंगे
चुप हैं घडियाल सूखी नदी देख लो
उनकी आँखों से आँसू निकल आयेंगे
जो बचाते हैं अफज़ल को इस देश में
वो हैं कारण अमन की कबर बन गयी
मर गये आदमी, एक खबर बन गयी
मुझको अफसोस मेरे गुलाबी शहर
तेरे सीने में नश्तर, लहू का कहर
अब सियासी बिसातों की सौगात बन
फैलता जायेगा हर डगर एक ज़हर
हादसे पर सिकेंगी बहुत रोटियाँ
देख गिद्धों की कैसी नज़र बन गयी
मर गये आदमी, एक खबर बन गयी
***राजीव रंजन प्रसाद
14.05.2008
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8 comments:
इस दुखद घटना पर बेहद मार्मिक रचना.
आतंकवादियों का कोई धर्म नही होता है। पता नही इसके मन क्या क्या उपजता रहता है। यह देश की गम्भीर छति है।
acchaa likhaa hai ....
acchey bhaav hain...
likhate rahiye
इतने मासूम लोगों की जानें लेने वाले इंसान नही दरिंदे थे,शर्म आती है ये सोच कर कि ये सब इंसान के रूप में थे,बेहद शर्मनाक ...
दर्द भरी नज्म
हादसे पर सिकेंगी बहुत रोटियाँ
देख गिद्धों की कैसी नज़र बन गयी
मर गये आदमी, एक खबर बन गयी
ek dukhad kintu sachchi tasweer.
सुन्दर रचना है भाई. बधाई.
हादसे पर सिकेंगी बहुत रोटियाँ
देख गिद्धों की कैसी नज़र बन गयी
मेरा दावा है इंसानियत
की इस दशा की जिम्मेदार है
तिजारत
और सियासत
हम सरे आम
सुबह-ओ-शाम
इन चिकने घड़ों की मज्ज़मत करें
बयानों से नहीं व्यवहार से
हालातों की मरम्मत करें .
आप की आत्मा का दर्द मुझे महसूस हुआ
सही कहा आपने। आपने इस हृदय विदारक घटना और उससे जुडे पहलुओं को बखूबी उदघाटित किया है।
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