Saturday, May 10, 2008

बम


उसे भूख लग आयी थी..और जब भूख लगी होती है, तो ज़िन्दा होता है सिर्फ पेट। रोज़ रोज़ यह देश जाने कितने ज़िन्दा पेटों वाले मुर्दे ढोता है और आहिस्ता-आहिस्ता मर रहा है खुद भी। भूखा पेट, इंकलाब नहीं होता, बहुत से भूखे पेट सैलाब होते हैं लेकिन।...।ज़िन्दा पेट गुमराह हो जाता है, फट पडता है। इसी लिये तो कभी बम्बई में धमाका होता है और कोई बाजार राख हो जाता है, या कभी कलकत्ता की कोई सडक, या मद्रास की इमारत.....।

भूख जब उसकी आँखों में उतरने लगी, पानी से निकाली गयी मछली हो गया वह। एक दम से दौडा और सामने की दूकान से समोसे उठा कर जितनी तेज हो सकता था भागा। तेज..और तेज..और तेज। चोर! चोर!! चिल्लाते दौड पडे लोग। जब भीड के हाँथ लगा तो अधमरा हो गया।

तीन दिन से खाली था पेट। स्टेशन पर, बस अड्डे, घर-घर जा कर.....लोग तो भीख भी नहीं देते आज कल। लंगडा, लूल्हा, अंधा, कोढी हर मुद्रा आजमा आया था। धत्! किसमत ही साली......उसने सडक पर पडे पत्थर को भरपूर लात मारी। हवा उसे डरा रही थी और पेट भीतर ही भीतर उमेठा जा रहा था। वह खामोश था, सोच शून्य। निगाहें हर ओर कि कहीं कुछ मिल जाये, जूठा पत्तल ही सही। धूप तेज थी, सिर चकराने लगा। वह पेड के नीचे आ खडा हुआ। फिर दूर दीख पडते हैंडपंप से जैसे उसमे रक्त फिर चल पडा हो। वह तेजी से हेंड पंप की ओर लपका। हैंडल दबाई, उठाई...ओं..आँ...खटर..पटर...और गट गट गट....जितना पी सकता था, पी गया। थोडा सुकून मिला उसे।

”कल भी कुछ न मिला तो मर जायेगा वह” उसने सोचा। उसे कुछ न कुछ तो करना ही था। फिर अंधा, लंगडा, लूल्हा बन कर स्टेशन हो आये या फिर भीड भाड वाली सडक....उहूं, उसे बहुत जोर की भूख लगी थी और क्या पता कल भी किसमत खराब हुई तो? “चोरी???” एक दम से विचार कौंधा, फिर हाल ही में हुई पिटाई का दर्द महसूस होने लगा उसे, जिसे भूख नें जैसे भुला ही दिया था। नहीं नहीं चोरी नहीं...घबरा कर अपना विचार बदल देना चाहा उसने। लेकिन भूख!!!!....।

सामने ही कोई सरकारी कार्यालय था। शाम लगभग ढल चुकी थी इस लिये सुनसान भी। एक बूढा सा चौकीदार गेट के पास स्टूल लगाये तम्बाकू मल रहा था। उसने बहुत ही नीरस निगाह इस इमारत पर डाली। निगाहें इससे पूर्व कि सिमटतीं, इमारत पर ही ठहर गयीं, एक चमक थी अब उनमें। थोडी देर में रात हो जायेगी। चौकीदार कौन सा जाग कर रात भर ड्युटी देगा। उसने देखा घिरी हुई दीवार ज्यादा उँची न थी।.....।रात हुई। घुप्प संन्नाटे में झिंगुर चीख रहे थे। वह दीवार फाँद कर भीतर प्रविष्ठ हुआ। बहुत सधे पाँव। खिडकी से हो कर बडी ही सावधानी से लडकते हुए कुछ लाल-पीले तार नोच लिये, बल्ब निकाल लिया, होल्डर खोल लिया, और भी...काली रंग की उस पोलीथीन में जो कुछ डाल सका। रामदरस दस रुपये तो देगा ही इतने के, उसने सोचा। वह उतर ही रहा था कि.....”धप्प!!!!!”। पॉलीथीन हाँथ से छूटा और फिर जोर की आवाज़...कौन?? कौन है वहाँ?? चौकीदार के जूतों की आवाज नें सन्नाटा चीर दिया था। जब तक चौकीदार आता, दीवार फाँद चुका था वह। दीवार के उस ओर बहुत हार कर बैठा वह हाँफ रहा था...“किसमत ही साली....”।

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ऑफिस में हो हल्ला मचा हुआ था।
“अजी साहब वो तो मैंने देख लिया कहिये, वर्ना आज हम सब...” शर्मा जी गर्व से बता रहे थे।
” क्या हो गया है हमारे देश को शर्मा जी, एवरीवेयर आतंकवाद है। आपने पुलिस को फोन तो कर दिया न?” घबराये अंदाज़ में मिसेज मिश्रा बोलीं।”
मैनें बम को देखते ही कर दिया था जी, वो जी अब पुलिस तो आती ही होगी जी”। सुब्रमण्यम नें नाक का चश्मा ठीक करते हुए कहा।
“हाऊ स्वीट सुब्रमण्यम” मिस लिलि नें भरपूर मुस्कान दी और सुब्रमण्यम जी, घोडा हिनहिनाये सी हँसी हँस कर रह गये।
काले रंग की प्लास्टिक एक कोनें में देखी गयी थी, जिसमें से झाँकते कई तरह के तार उसे संदिग्घ बना रहे थे। ऑफिस में बम होनें की दहशत थी। कर्मचारी भीड बनाये सडक पर खडे थे। सारे बाज़ार में बम होने का तहलका, गर्मागर्म खबरों और अफवाहों से बाज़ार गर्म।
“आपने सुना मिर्जा साहब, क्या ज़माना आ गया है” पान लगाते हुए बनवारी बोला।”एक हमारा ज़माना था बनवारी, हमारे बाप-दादाओं का ज़माना था, अमन और सुकून की दुनियाँ थी और आज....”
“आदमी की तो कीमत ही नहीं रही। इतना खौफ फैला है कि जान तो हवा में लटकी होती है। सुबह घर से निकले तो क्या पता शाम तक घर लौट पायें भी या नहीं।“
“अजब अंधेरगर्दी है मियां। गलती हमारी गवरन्मेंट की है कि रोजगार तो देते नहीं ये लडकों को। अब लडके बंदूख न चलायें, बम न चलायें तो क्या करें?”
”वैसे मिर्जा साहब कितने बच्चे हैं आपके” बनवारी नें चुहुल से पूछा।
“खुदा के फज़ल से नौं लडकें हैं तीन लडकियाँ।“
“मिर्जा साहब, छ: घरों की संतान अकेले अपने घर में पालोगे तो क्या करेगी गवर्नमेंट”
”अमां बनवारी तुम मज़ाक न किया करो हमसे, अच्छा लाओ, एक पान और बनाओ। वैसे पता कैसे लगा कि बम रखा है” मिर्जा साहब बिगड गये।
”वो किरानी हैं शर्मा जी। इमानदार इतने कि भले कोई काम न करें आधा घंटे पहले ऑफिस आ जाते हैं। उन्होंने ही देखा।“
”क्या कहें बनवारी लगता है पतन होता जा रहा है दुनियाँ का। जहाँ देखो वही लूटमार, छीना झपटी, बम धमाके। अमां दहशत का आलम ये है कि हमने सुना था कि एक केला और दो सेव थैले में रख कर, बम और पिस्तौल बता कर हवाई जहाज का अपहरण कर लिया था किसी नें”। मिर्जा साहब नें गहरी स्वांस छोडते हुए कहा।
सायरन की आती हुई आवाज़ ने माहौल को और गंभीर बना दिया।
”लीजिये पुलिस आ गयी लगता है” बनवारी नें पान मिर्जा साहब को थमाते हुए कहा।पुलिस की दसियों गाडियाँ आ कर रुकीं। धडाधड पुलिस वाले उतरने लगे। बम को निष्कृय करने के लिये एक पूरा दस्ता आया हुआ था। चारों ओर मोर्चा बँधा। अंतरिक्ष यात्रियों जैसी पोशाकें पहने दो लोग धीरे धीरे बढने लगे पॉलीथीन में लिपटे उस बम की ओर।...। माहौल जिज्ञासु, शांत। चारों ओर से आँखें पुलिस कार्यवाही की ओर।...। निकलता क्या? तार के लाल पीले टुकडे, होल्डर और वही सब कुछ जो पिछली रात...।
“शर्मा जी पूरे अंधे हैं आप, बेकार में....” मिसेज मिश्रा नें नाराजगी जाहिर की।
”और आप सुब्रमण्यम जी, कौवा कान ले कर जा रहा है सुना तो कौवे के पीछे भागने लगे। देख तो लेते आपके कान सलामत हैं या नहीं” मिस लिली बोलीं।
“बनवारी ये नौबत है देश की” एक दीर्ध नि:स्वांस भरी मिर्जा जी नें और जाने लगे।..।


*** राजीव रंजन प्रसाद
25.08.1993

4 comments:

mamta said...

इसे पढ़कर जागते रहो फ़िल्म याद आ गई जिसमे राज कपूर पानी की तलाश मे घूमते है और लोग उन्हें चोर समझ लेते है।

डॉ .अनुराग said...

bahut hi marmsparshi rachna hai.....

योगेन्द्र मौदगिल said...

बढ़िया. जय मां दंतेश्वरी. २००४ की २२ मई को गीदम में कविसम्मेलन था आयोजक भाई अवधेश अवस्थी उसी दिन दांतेवाड़ा जाकर मां के दर्शन करा कर लाए थे. आज आपके ब्लाग पर हो गये. मुझे तो लगा मेरी तीर्थयात्रा हो गई.

शोभा said...

राजीव जी
इतने सुन्दर और सारगर्भित लेख के लिए बधाई ।