बरसाती नदी हो गये गीत मेरे
कहीं खो गये अर्थ हैं मीत मेरे..
कहीं खो गये अर्थ हैं मीत मेरे..
बहुत सोचता हूँ कि लय ही में लिक्खूं
तय हैं जो मीटर तो तय ही में लिक्खूं
हरेक शब्द नापूं , हरेक भाव तोलूं
कठिन लिक्खूं भाषा, मैं विद्वान हो लूं
मगर माफ करना यही लिख सकूंगा
बहुत बेसुरे से हैं, संगीत मेरे
बरसाती नदी हो गये गीत मेरे..
माँ शारदा से, लडा भी बहुत मैं
ये क्या लिख रहा हूँ अडा भी बहुत मैं
मुझे भी तो जुल्फों में बादल दिखा है
मेरे भी तो खाबों में संदल दिखा है
तो ये दर्द क्यों, क्यों मुझे आह लिखना
तेरे आँख के अश्क क्यों रीत मेरे
बरसाती नदी हो गये गीत मेरे..
मेरा शब्द बन कर मचलती हैं चीखें
तेरी ही घुटन है तू देखे न दीखें
कलम एक चिनगी, कलम जिम्मेदारी
कलम शंख है, फूंकता मैं पुजारी
मेरे शब्द गर तुझमें उम्मीद भर दें
तू फिर उठ खडा हो तो है जीत मेरे
बरसाती नदी हो गये गीत मेरे..
मैं लिक्खूं मजूरा, मैं हल्ला ही बोलूं
न सहमत हुआ तो मैं झल्ला ही बोलूं
मैं अपशब्द लिक्खूं, मेरे शब्द पत्थर
मेरे शब्द में नीम, आँगन का गोबर
मगर माफ करना यही लिख सकूंगा
बहुत बेसुरे से हैं, संगीत मेरे
बरसाती नदी हो गये गीत मेरे..
माँ शारदा से, लडा भी बहुत मैं
ये क्या लिख रहा हूँ अडा भी बहुत मैं
मुझे भी तो जुल्फों में बादल दिखा है
मेरे भी तो खाबों में संदल दिखा है
तो ये दर्द क्यों, क्यों मुझे आह लिखना
तेरे आँख के अश्क क्यों रीत मेरे
बरसाती नदी हो गये गीत मेरे..
मेरा शब्द बन कर मचलती हैं चीखें
तेरी ही घुटन है तू देखे न दीखें
कलम एक चिनगी, कलम जिम्मेदारी
कलम शंख है, फूंकता मैं पुजारी
मेरे शब्द गर तुझमें उम्मीद भर दें
तू फिर उठ खडा हो तो है जीत मेरे
बरसाती नदी हो गये गीत मेरे..
मैं लिक्खूं मजूरा, मैं हल्ला ही बोलूं
न सहमत हुआ तो मैं झल्ला ही बोलूं
मैं अपशब्द लिक्खूं, मेरे शब्द पत्थर
मेरे शब्द में नीम, आँगन का गोबर
मेरे शब्द रौशन, अगर है अंधेरा
निराशा में ये शब्द उम्मीद मेरे
बरसाती नदी हो गये गीत मेरे..
कहीं एक रोडा, कोई ईंट जोडा
सच है री कविता कहीं का न छोडा
मेरी लेखनी में नहीं बात कोई
मगर साफ कहता हूँ है साफगोई
कहीं से शुरू फिर कहीं बेतुके
बहुत सिरचढे शब्द मनमीत मेरे
बरसाती नदी हो गये गीत मेरे..
*** राजीव रंजन प्रसाद
15.04.2007
निराशा में ये शब्द उम्मीद मेरे
बरसाती नदी हो गये गीत मेरे..
कहीं एक रोडा, कोई ईंट जोडा
सच है री कविता कहीं का न छोडा
मेरी लेखनी में नहीं बात कोई
मगर साफ कहता हूँ है साफगोई
कहीं से शुरू फिर कहीं बेतुके
बहुत सिरचढे शब्द मनमीत मेरे
बरसाती नदी हो गये गीत मेरे..
*** राजीव रंजन प्रसाद
15.04.2007
8 comments:
निराशा में ये शब्द उम्मीद मेरे....
राजीव रंजन जी बहुत अच्छा गीत है। आपकी कलम और संवेदना में बड़ा दम है। बधाई।
bahut achchhi prastuti..likhte rhen
bahut sundar ..
गीत गीले नहीं होते बरसात में
आंख से जब निरंतर लगे है झड़ी
बूँद बादल से पल पल टपकती रही
एक विश्वास मुझसे कहे रात दिन
बिजलियां कौंधती हों भले गात में
गीत गीले नहीं होते बरसात में
बहुत उम्दा, राजीव भाई.
bahut hi sundar kavita,just awesome.
waah bahut badhiya bhav liye hue.. badhai..
क्या बात है जनाब
बेहद उम्दा
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