Thursday, May 01, 2008

कारण क्या था?


नारज़गी हद से बढी
और हो गयी पर्बत
आँखों से पिघल गया ग्लेशियर
जैसे मोम नदी हो जाता है
पत्थर की तरह पिघल पिघल कर..

पीठ से पीठ किये
युगों तक खमोश दो बुत
इस तरह बैठै रहे
तोड तोड कर चबाते हुए घास के तिनके
जैसे गरमी की दोपहर ढलती नहीं..

और जब नदी न रही
पिघल चुका पत्थर
बुत "मै" और "तुम" हो गये
बहुत सोच कर भी
याद न रहा, न रहा
कि मुह फुलाये ठहर गये कितने ही पल

...कारण क्या था?

*** राजीव रंजन प्रसाद
२३.११.१९९५

3 comments:

अमिताभ मीत said...

वाह ! क्या बात है भाई. बहुत बढ़िया है.

Krishan lal "krishan" said...

बुत "मै" और "तुम" हो गये
बहुत सोच कर भी
याद न रहा, न रहा
कि मुह फुलाये ठहर गये कितने ही पल
...कारण क्या था?

bahut hi sundar abhivayakti

पारुल "पुखराज" said...

bahut khuub..