Saturday, April 26, 2008

अरमान आँख ही को, पत्थर थमा गये


पंछी थे डाल डाल के, जाने कहाँ गये
अरमान आँख ही को पत्थर थमा गये॥

तेरी ज़ुल्फ के अंधेरे, सागर को ढक न पाये
दो बूंद, पलक ही के, कोरों पे छलक आये
वो शाम मन में बैठी, अंगार हो गया तन
आँहों के कदम धीमें, पायल न झनक जाये

दिल रबर की चादर, तुम खींचते हो रहबर
मुझे तोड जो न पाये, अंबर बना गये।
पंछी थे डाल डाल के, जाने कहाँ गये
अरमान आँख ही को, पत्थर थमा गये॥

कोई मेरा हाल पूछे, तेरे दर का मैं पता दूं
दरवेश वो है सब कुछ, उसे किस तरह लुटा दूँ
जिसे नंगे पाँव चल कर परबत पे रख के आया
उसे मंदिरों में पूजो, मैं आत्मा घुटा दूं

सजदा है मेरी तनहा आँखों की बेबसी
अब क्या तलाश होगी, तुम हो खुदा गये।
पंछी थे डाल डाल के, जाने कहाँ गये
अरमान आँख ही को, पत्थर थमा गये॥

तुम्हें क्या पता कि मेरे भीतर ही मेरा मैं है
मेरी मौत मुझपे परदा ना डाल सकी जानम
तेरा नाम सुबहो शाम बन कर अज़ान गूँजा
आँख में गया कुछ, जो गुल पे खिली शबनम

मेरे गम में तेरा दम ना, घुट जाये मेरे हमदम
जो तुम गये तो मेरे, दोनों जहाँ गये।
पंछी थे डाल डाल के, जाने कहाँ गये
अरमान आँख ही को, पत्थर थमा गये॥

*** राजीव रंजन प्रसाद
3.10.2007

1 comment:

anuradha srivastav said...

बहुत खूब..........