Tuesday, November 21, 2006

बच्चों सा

मै अपनें सब्र की शरारत से हैरां हूँ
ईतना बडा पत्थर कलेजे पर ढो लाया
और अब टूटे हुए कलेजे पर
टूटे हुए खिळौने सा रूठता है..
बच्चों सा


***राजीव रंजन प्रसाद

2 comments:

Anonymous said...

kya baat hai Rajiv ji
do panktiyo me hi poori kitaab

गौरव सोलंकी said...

.....

कुछ कहने को बाकी नहीं बचता इसके बाद...
बहुत सुन्दर.