Wednesday, June 11, 2014

हाँ भई!! राष्ट्रीय समस्या है दिल्ली की बिजली



हाँ भई!! राष्ट्रीय समस्या है दिल्ली की बिजली 
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अभी बहुत दिन नहीं हुए, नक्सलियों ने विद्युत व्यवस्था ठप्प कर दी थी और लगभग पंद्रह दिनों तक केरल राज्य से भी बड़े बस्तर संभाग के बहुतायत क्षेत्रों में घुप्प अंधेरा हो गया था। सभी त्रस्त थे, लालटेन युग लौट आया था, लोग गर्मी की रातों में सडकों पर नींद लेने के लिये विवश थे, अस्पतालों में ऑपरेशन तक नहीं हो सके थे। ठीक इसी समय राष्ट्रीय मीडिया दिल्ली में गली मोहल्ले की लडाई को राष्ट्रीय समाचार बनाये हुए था। हम यह सोचने के लिये बाध्य थे कि क्या बस्तर भारत का ही हिस्सा है? और अगर हाँ तो यहाँ की दिक्कतें, समस्यायें और हालात राष्ट्रीय खबर क्यों नहीं बनते? दिल्ली से कैमरे तब ही बस्तर आते हैं जब उन्हें कोई सनसनीखेज खबर करनी हो। वे तब जंगल के भीतर जाते हैं, किसी नक्सली का इंटरव्यू ले आते हैं और फिर खबर बनती है कि फलाना चैनल ग्राउंड जीरो पहुँचा। क्षेत्रीय संवेदनाओं, समस्याओं और वास्तविकतओं को यह राष्ट्रीय मीडिया की श्रद्धांजलि होती है। 

आज दिल्ली में अस्थाई बिजली संकट है और कुछ इलाकों के हाल उत्तरप्रदेश के नगरों में सर्वदा रहने वाले हालात जैसे हो गये है। दिल्ली वालों को आठ से दस घंटे बिजली नहीं मिल रही यह खबर इतनी बडी है कि इसे कन्याकुमारी वाला भी झेले, कश्मीर वाला भी और बिहार के लोग भी। हाँ य़ह ठीक है कि देश की राजधानी होने का सुख दिल्ली को हमेशा मिलता रहता है और वहाँ के गली मुहल्लों की घटना भी राष्ट्रीय खबर हो जाती है। मीडिया के प्रोपागेंडा की वजह से एक बडे शहर में जिसे राज्य का दर्जा मिला है, वहाँ गाँवों जितनी बडी परिधियों वाले विधान सभाओं में बहुमत से कम सीटें हासिल करने के बाद बेमेल जोड से बनी एक सरकार की नौटंकियाँ दिन रात का राष्ट्रीय समाचार बनी रही। केजरीवाल ने क्या खाया, क्या बोला, कहाँ खांसे आदि आदि सुन कर अरुणाचल भी पकता रहा और कोच्चि भी। इस दौरान अनेक बडे बडे राज्यों मे भी नयी सरकारें आयीं, किसी ने नहीं जाना। 

यह दिल्ली का विशेषाधिकार है कि वह खुद को ही दिखाये, खुद की परेशानियों पर ही छाती पीटे, अपनी सडकों के गड्ढों को तालाब बताये, अपने बिजली संकट को अंतर्राष्ट्रीय समस्या निरूपित कर दे। यह दिल्ली के मीडिया पर है कि उसके लिये देश सिमटता सिमटता स्टूडियो के भीतर घुस आया है। उसे क्यों फिक्र हो कि आज भी देश की बहुतायत आबादी लालटेन युग में ही है। उसे क्यों फिक्र हो कि आज भी देश के बहुतायत गाँव सडकों से नहीं जुडे और बरसात आते ही देश-दुनिया से पूरी तरह कट जाते हैं। उसे क्यों फिक्र हो कि इस देश में असम, अरुणाचल, सिक्किम मणिपुर जैसे राज्य भी हैं जिनकी भौगोलिक परिधि भी दिल्ली से अधिक बडी है और समस्यायें भी अनसुनी हैं। दिल्ली ही राष्ट्र है इसलिये हम बाध्य हैं कि अरविन्दर सिंह लवली, अरविन्द केजरीवाल और हर्षवर्धन के विद्युत प्रवचनों को इनवर्टर से हासिल बिजली में भी झेलें और इसपर बहसियायें। हम भारत के लोग दिल्ली के विकास से रोमांचित हैं और दिल्ली की परेशानी से बेचैन। हमारी मजबूरी है।

-राजीव रंजन प्रसाद 

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