Friday, August 10, 2007

मैनें जीना सीख लिया है..



मैनें जीना सीख लिया है
तुमनें सोचा था सुलगता धुवां धुवां होगा
बिखर जायेगा खुद्-ब-खुद खुद से
राख हो जायेगा बुझेगा जब..

तुमने सोचा न था कि अंबर है
मेरी आँखों में आ के ठहरा सा
तुमने सोचा न था कि सागर है
मेरे दिल ही में एक गहरा सा
तुमनें तो आग दे के देख लिया
खुश हुए दिल कि जल गया होगा..

भाप बन कर के उड गया सागर
और बादल बना गमों का सा
आँख से फिर बरस पडा सावन
देख लो बुझ गया है मेरा मन..

*** राजीव रंजन प्रसाद
१२.११.१९९५

15 comments:

Udan Tashtari said...

बढ़िया है मगर हो कहाँ आप इतने दिनों से?? दर्शन ही दुर्लभ हैं. अब जारी रहें. शुभकामनायें.

Anonymous said...

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Sanjeet Tripathi said...

बढ़िया!!

कहां व्यस्त है आजकल आप? सब ठीक ठाक ना?

अभिषेक सागर said...

राजीव जी
अच्छी कविता है।
खास कर
तुमनें तो आग दे के देख लिया
खुश हुए दिल कि जल गया होगा..


आँख से फिर बरस पडा सावन
देख लो बुझ गया है मेरा मन..

-रचना सागर्

Anupama said...

Kavita aachi hai rajeevji

भाप बन कर के उड गया सागर
और बादल बना गमों का सा
आँख से फिर बरस पडा सावन
देख लो बुझ गया है मेरा मन..

ajeeb kismat ki bujh jaata hai kai bar fhir jalta hai.....is jalne bujhne me wo kab thooth ho jaata hai pata hi nahi chalta

शिवानी said...

bahut umda ..saral bhasha mein kahi gayi hai ..kavita bahut pasand aayi.aapke keemtii sujhaavon ka hamein bhi apne blog mein intzaar rahega.

WWG said...

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WWG :)

महावीर said...

भाप बन कर के उड गया सागर
और बादल बना गमों का सा
आँख से फिर बरस पडा सावन
देख लो बुझ गया है मेरा मन..
बहुत सुंदर।
आजकल कहां हो? फिर से शुरू कर दो, इतना
इंतज़ार अच्छा नहीं होता है।

आलोक कुमार said...

भाप बन कर के उड गया सागर
और बादल बना गमों का सा...

अति सुन्दर रचना…आपका ब्लोग मुझे बहुत भाया।

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

आपके इस ब्लाग पर पहली बार आया हूं। आपका परिचय वाकई लाजवाब है।
रचना वाकई जबरदस्त है। नकारात्मक भावों को आपने सकारात्मक में प्रस्तुत करके एक नया प्रयोग किया है। आपको बधाई इस सुंदर कविता के लिए और इसलिए भी कि आपने जीना सीख ‍लिया है। आशा है आगे भी इसी प्रकार जीवंत कविताएं पढने को मिलती रहेंगीं।

नंदन said...

कविता अच्छी है

डाॅ रामजी गिरि said...

आँख से फिर बरस पडा सावन
देख लो बुझ गया है मेरा मन..



राजीव जी
जीवंत कविता है।

Anonymous said...

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खूबसूरत...