Monday, February 05, 2007

गज़ल

निगाह मिल न सकी कैसी मुलाकात हुई
होठ खामोश रहे, आज कितनी बात हुई..

मैनें सपनों को डुबोया तो ताल सूख गया
मैनें सपनों को जगाया तो कितनी रात हुई..

तेरी मुस्कान नें ही राज सभी खोल दिये
दिल को अहसास हुआ मेरी कहाँ मात हुई..

तुमनें मोती वो लुटाये जो मुलाकात हुई
मुझसे पलकों नें कहा, कैसी ये सौगात हुई..

मैनें "राजीव" तेरे बिन वो खंडहर देखे
जाल मकडी के हुए, सांय-सांय वात हुई..

*** राजीव रंजन प्रसाद
२९.०१.२००७

3 comments:

अनुनाद सिंह said...

राजीव भाई, आपकी कवितायें बहुत पसन्द आयीं। भाव अच्छे लगे, शब्द सरल और भाषा सरस है।

Priyanka Srivastava said...

Rajeev Ji,

Kya Kahu Main Apko,
Tarrif Ke liye Shabad Khatam Ho Gayee Hai,
Apne Toh Iss Shayara Ko Bhi Maat De di...........
These lines are amazing....

तेरी मुस्कान नें ही राज सभी खोल दिये
दिल को अहसास हुआ मेरी कहाँ मात हुई..

तुमनें मोती वो लुटाये जो मुलाकात हुई
मुझसे पलकों नें कहा, कैसी ये सौगात हुई..

Priyanka Srivastava said...

Rajeev Ji
Aapki yeh Gazal Paddh Ke Aab Mujhse Bhi Raha Nahi Ja Raha Hai......

Arrz Karti hoon...........

दिल जीत ले जो वो जिगर हम भी रखते है ,
भीङ मैं भी जो नज़र आये वो असर हम भी रखते है,
यु तो वादा किया है किसी से हर दम मुस्कुराने का,
वरना इन आंखो मै समन्दर हम भी रखते हैं