Tuesday, February 16, 2010

बंगाल में हुए नक्सली हमले पर खामोश मीडिया, मानवादिकारवादी और लेखक [श्रद्धांजलि आलेख]

कोई आश्चर्य नहीं कि चौबीस घंटे भी नहीं बीते और पश्चिम बंगाल में नक्सली हमले की खबर मीडिया के सर से सींग की तरह गायब हो गयी। देश और दुनियाँ में बहुत सी खबरे हैं जिसके लिये हमारे देसी जेम्स बॉंड जुटे हुए है और बहुत सक्रिय हैं। कोई महानायक को महानालायक सिद्ध करने में तुला है तो कोई मुम्बई हमलों के पीछे की कफन खसोटी को बेनकाब कर देना चाहता है। जाहिर है आतंकवाद के हिन्दुकरण और मुसलमानी करण से टी. आर. पी की रोटी बहुत आसानी से सेकी जा सकती है लेकिन आतंकवाद के तालिबानीकरण यानि कि नक्सलवाद से किसी को कोई वास्ता नहीं। मेरे क्षोभ को शब्द बनने तक चौबीस पुलिस वाले शहीद हो गये थे और जाने कितने लापता, मैं अब जानने लगा हूँ कि इस क्रांति के लम्बरदारों के झंडे लाल क्यों हैं, आखिर लहू उन्हे कितनी सहजता से सुलभ है।

मारे गये पुलिस वाले चार्ल्स डार्विन की इजाद किस प्रजाति के थे पता नहीं चूंकि इस देश का मानवाधिकार उन्हे हासिल ही नहीं। व्यवस्था पर चोट के नाम पर कभी बारूदी सुरंग में चिथडे हो जाते हैं कभी विदेशी हथियारों के आगे बेबस उनकी पुरानी रायफलें उन पर कफन धर देती हैं। मोमबत्तियों उन घरों में भी जलो जहाँ उजाला करने की हिम्मत अब किसी सूरज के बाप में भी नहीं है। क्रांति में सब जायज है तो फिर इन चौबीस-पच्चीस विधवाओं और सौ-पचास अनाथों से क्या वास्ता। एक दिन जब भूत बसेंगे तो इनका समाजवाद होगा।

एसी घटनाओं के बाद माननीय लेखक गण कुछ दिन अपनी दुम किसी बिल में घुसाये रखते हैं फिर फिजा के शांत होते ही उनकी क्रांतिकारी खुजास उजागर होने लगती है। हुजूर आपकी तो सुबह ही सुबह है फिर किस सबेरे को आवाज देते हो? आपकी लाल लॉबी आपकी पीठ खुजाने को दोनों हाँथों से तत्पर है, आपको पुरस्कारों से नवाजा जाना तय है, आपको महान लेखक सिद्ध करने के लिये आपकी किताबों पर अनेक चारणों द्वारा “जगदीश हरे” गाया जाना तय है। यह सच्चाई है और बेहद कडुवी कि इस देश में हिन्दी का लेखक कलम का नही छपास का पुजारी है। कुछ एसे प्रकाशन और कुछ एसी पत्रिकायें (नाम लेने की आवश्यकता मैं नहीं समझता) जो इसी तरह के “गिव एण्ड टेक” पर चलती हैं उनमें जिन्दा रहने ले लिये लाल-घसीटी करनी ही पडती है वर्ना खेमे से बाहर। तो मजाल है कि माननीय नक्सलवादियों से विमुख वे कुछ कह गुजरे....बाप रे बाप, लेखक कहलाये जाने पर लात पड़ जायेगी।

तो इस सारे जहाँ से अच्छा में कुछ माननीय पत्रकार, अनेकों विख्यात मानवाधिकार वादी और महान लेखक जिस आतंकवाद के समर्थक हों वहाँ कुछ पुलिस वालों की मौत पर श्रद्धांजलि भी क्या होगी? मैं मोममत्ती ले कर नहीं खडा हूँ बस पूरी विनम्रता से अपनी श्रद्धा उन पुलिस वालों की शहादत को अर्पित करता हूँ। ईश्वर आपकी आत्मा को शांति प्रदान करे और आपके परिवार को यह दुख सहन करने की शक्ति दे।

8 comments:

सुमो said...

इन मानवाधिकार वालों का सूत्र है - "नक्सली हिंसा हिंसा न भवति"

जब आम आदमी अपने जूते उतार कर इनके आगे खड़ा हो जायेगा तभी ये मानवाधिकारवाले भागेंगे,

पिछले महीने जब आम आदमी मेघापाटकर एन्ड गुर्गों के आगे जूते हाथ में लेकर खड़ा होगया था तब ये कैसे भाग खड़े हो गये थे, जिन पुलिस वालों को ये गालिंया देते थे, उन्ही से गुहार करने लगे थे...

प्रवीण शुक्ल (प्रार्थी) said...

mera bhi nama aur shrdhaanjli
saadar
praveen pathik
9971969084

रंजना said...

आपके क्षोभ को भली भांति अनुभूत कर सकती हूँ...क्योंकि एक ऐसा ही ज्वार मेरे अन्दर भी कैद है...

यह कैसा वाद है ?????? छिः है इसपर...और इसके पोषकों पर...

Satyajeetprakash said...

राहुल, सोनिया, धर्म-निरपेक्षता, सांप्रदायिकता, उदारवाद का राग छेड़ेगे तभी तो कांग्रेस, वेटिकन, मोंसेंटो की तिजौरी खुलेगी.

उम्दा सोच said...

मै हूँ भारतीय मीडिया .... यकीन न हो तो भौ भौ भौ भौ भौ भौ भौ भौभौ ... भऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊ

Anil Pusadkar said...

राजीव आज ही वापस लौटा हूं और आते ही ब्लागजगत मे घुस गया।आपने सही लिखा है लेकिन क्या करे इस देश का दुर्भाग्य ही है कि यंहा आतंकवादियों और अपराधियों के मानवाधिकार देखे जाते हैं?शहीद मोहनचंद शर्मा की शहादत पर सवाल उठाये जाते हैं?आदमीआदमी मे फ़र्क़?मौत-मौत मे फ़र्क़?और उस पर घटिया मीडिया,दरअसल मीडिया ही देश का मटिया मेट कर रहा है।

Sanjeet Tripathi said...

bahut sahi likha hai aapne rajeev jee.
kya app bataur ek chhattisgarhia, chhattisgar ke samuhik blog me likhna pasand karenge?

डॉ .अनुराग said...

दुखद घटना है .सरकार को अब लफ्फाजी से ज्यादा कार्य करने की जरुरत है ....अगर आप प्रिंट मीडिया की बात करे तो दैनिक हिन्दुस्तान में ये मेन पेज पर भी खबर है .....ओर देर रत टाइम्स now पर लम्बी चर्चा चली है ..पर ये भी सच है के भारत का मीडिया अभी भी संवेदनशील ओर जरूरी मुद्दों से हटकर सिर्फ फ़िल्मी ओर गैर जरूरी बहसों में अटका हुआ है .सरोकारी ओर महत्वपूर्ण मुद्दे मेन खबर सेबाहर है ...