Monday, August 14, 2017

बस्तर के नाग और उनकी जड़ें (बस्तर: अनकही-अनजानी कहानियाँ, भाग – 57)


नागों की तीन मुख्य शाखाओं ने कर्नाटक को अपनी कर्मस्थली बनाया। ये तीन शाखाये हैं - सेन्द्रक शाखा; सेनावार शाखा तथा सिन्द शाखा।  नागों की सेन्द्रक शाखा दक्षिण का शक्तिशाली राजवंश बन कर उभरी और उसका प्रभुत्व कर्नाटक में पाँचवी से सातवी शताब्दी तक रहा है। प्राप्त अभिलेख बताते हैं कि नाग राजा भानुशक्ति ने सेन्द्रक नागों के साम्राज्य की स्थापना की थी। उसके बाद की पीढ़ियों के ज्ञात शासकों में आदित्यशक्ति  और पृथ्वीवल्लभ निकुम्भलशक्ति प्रमुख नाग शासक थे। अभिलेखों से यह भी ज्ञात होता है कि कर्नाटक में शासन करने वाले इन सेन्द्रक नागों ने एक समय में गुजरात के एक भाग तक अपनी सीमा का विस्तार कर लिया था। नागों की अगली कड़ी अर्थात सेनावार शाखा कर्नाटक के कडूर और सिमोगा के के आसपास अत्यधिक प्रभावशाली थी। इनका शासन समय उतार चढ़ावों भरा रहा है। फणिध्वज सेनावार शाखा के नागों का राजकीय प्रतीक था। सेनावार नागों की सत्ता के संस्थापक नाग राजा जीविताकार माने जाते हैं जिनके पश्चात की ज्ञात पीढ़ियाँ हैं जीमूतवाहन तथा मारसिंह। अंतिम सेनावार नाग शासक के सम्बन्ध में जानकारी वर्ष- 1058 के आसपास प्राप्त होती हैं; संभवत: इसके पश्चात इस नाग शाखा का पतन हो गया। 

तीसरी, सिन्द शाखा की छ: उपशाखायें हुई और उन्होंने दक्षिण भारत के विभिन्न क्षेत्रों पर अपनी सत्ता कायम की। इन छ: शाखाओं में चार अर्थात बगलकोट के सिन्द, येलबुर्गा के सिन्द, बेलगविट्ट के सिन्द तथा बेल्लारी के सिन्द नागों ने कर्नाटक में तथा दो अर्थात चक्रकोट के सिन्द तथा भ्रमरकोट के सिन्द ने बस्तर में शासन स्थापित किया। छिन्द शब्द सिन्द से ही उत्पन्न हुआ है। (चक्रकोट के छिन्दक नाग; डॉ. हीरालाल शुक्ल)। बस्तर में नागवंश एक वैभवशाली सत्ता रही है जिसने 760 ई से 1324 ई. तक शासन किया। आज बस्तर में प्राप्त पुरातात्विक महत्व की अधिकतम ज्ञात विरासतें नाग शासकों की निर्मितियाँ हैं। 

- राजीव रंजन प्रसाद

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