Wednesday, August 09, 2017

आस्था और मनोकामना (बस्तर: अनकही-अनजानी कहानियाँ, भाग – 53)


बस्तर में चालुक्य वंश के संस्थापक अन्नमदेव से ले कर महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव तक सभी की देवी दंतेश्वरी पर प्रगाढ आस्था थी। इस आशय के अनेक दृष्टांत, विवरण अथवा किम्वदंतियाँ पढ़ने सुनने को मिलती रहती हैं। बस्तर में राजा राजपालदेव (1709 – 1721 ई.) का शासन समय नितांत उथलपुथल का दौर भी था। राजमहल के भीतर किये जाने वाले षडयंत्रों की बहुधा खबरें बाहर नहीं आ पातीं, लेकिन वहीं से किसी राज्य की भविष्य की राजनीतियाँ तय हुआ करती थीं।  ऐसी की एक कहानी राजा राजपालदेव की भी है जिनकी दो रानियाँ थी – रुद्रकुँवरि बघेलिन तथा रामकुँवरि चंदेलिन। रानी रुद्रकुँवरि से दलपत देव तथा प्रताप सिंह राजकुमारों का जन्म हुआ तथा रानी रामकुँवरि के पुत्र दखिन सिंह थे। 

प्रिय रानियों ने शासक पतियों से सर्वदा अपना मनचाहा करवा लिया है। रानी रामकुँवरि अपने पुत्र दखिन सिंह को अगला राजा बनाना चाहती थी। इस प्रयास में आवश्यक था कि राजधानी पर प्रिय बेटे की पकड़ मजबूत की जाये। रामकुँवरि की साजिश के अनुसार ही चलते हुए राजा राजपाल देव ने अपनी दूसरी रानी रुद्रकुँअरि के पुत्रों, राजकुमार दलपत देव को कोटपाड़ परगने तथा प्रतापसिंह को अंतागढ़ मुकासा का अधिपति बना कर राजधानी से बाहर भेज दिया गया। यह पूरी कवायद इस लिये थी जिससे कि वयोवृद्ध राजा के स्वर्गवास के बाद राजकुमार दखिन सिंह को निष्कंटक रूप से बस्तर के राजसिंहासन पर बैठाने में आसानी होती। कहते हैं कि बुरी नीयत से देखे गये सपने सच नहीं होते। राजकुमार दखिन सिंह किसी अज्ञात बीमारी के कारण बीमार पड़ गये। वैद्यों और ओझाओं ने सारे प्रयास करने के पश्चात नाउम्मीदी में सिर हिला दिया। राजकुमार के बचने की सारी उम्मीद जाती रही थी। अब आखिरी कोशिश के रूप में राजा ने दंतेश्वरी माँ के दरबार में अपने बेटे को उपस्थित कर दिया। मृत्यु से बचाने के लिये राजकुमार दखिन सिंह के शरीर को दंतेश्वरी माँ की मूर्ति के साथ बाँध दिया। देवी ने संभवत: राजकीय षडयंत्रों में पूर्णविराम लगाने का सुनिश्चित कर लिया था। रात्रि ही राजकुमार दखिन सिंह स्वर्ग सिधार गये। लाश के बोझ से रस्सियाँ टूट गयी और सुबह परिजनों ने देखा कि माँ दंतेश्वरी के चरणों में राजकुमार का मस्तक पड़ा हुआ था। 

- राजीव रंजन प्रसाद 

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