Tuesday, August 01, 2017

मधुरांतक देव और नरबलि बस्तर: अनकही-अनजानी कहानियाँ (भाग – 44)


बस्तर अंचल में नाग राजाओं का शासन विभिन्न मण्डलों में विभाजित करता था, इन्ही में से एक था मधुर मण्डल जिसमें छिन्दक नागराजाओं की ही एक कनिष्ठ शाखा के मधुरांतक देव का आधिपत्य था। चक्रकोट के राजा धारवर्ष जगदेक भूषण (1050 – 1062 ई.) के निधन के पश्चात चक्रकोटय में उत्तराधिकार को ले कर संघर्ष हुआ और राजनीतिक अस्थिरता हो गयी। इस परिस्थिति का लाभ उठा कर ‘मधुर-मण्डल’ के माण्डलिक मधुरांतक देव ने चक्रकोटय पर अपनी “एरावत के पृष्ठ भाग पर कमल-कदली अंकित” राज-पताका फहरा दी। कहते हैं कि मधुरांतक देव नितांत बरबर और निर्दयी था। उसे कुचल देना ही आता था। ड़र के साम्राज्य ने शासक और शासित के बीच स्वाभाविक दूरी उत्पन्न कर दी। उस पर अति यह कि अपनी कुल-अधिष्ठात्री माणिकेश्वरी देवी के सम्मुख नरबलि की प्रथा को नीयमित रखने के लिये उसने राजपुर गाँव को ही अर्पित कर दिया था। यह गाँव वर्तमान जगदलपुर शहर के उत्तर-पश्चिम में स्थित है। वहाँ से जिसे चाहे उठा लो और देवी के सम्मुख धड़ से सिर को अलग कर दो। 

जिन खम्बों पर साम्राज्यों की छतें खड़ी  होती है वे शनै: शनै:  कुचले हुए लोगों की आँहों भर से खोखले हो उठते हैं। आतंक के साम्राज्य के विरुद्ध जन-एकजुटता हुई, इस क्रांति का नेतृत्व किया था सोमेश्वरदेव ने। वे दिवंगत नाग राजा धारवर्ष जगदेक भूषण के पुत्र थे। मधुरांतक द्वारा पराजित और निर्वासित किये जाने के बाद वे चक्रकोटय के निकट ही किसी गुप्त स्थान पर रहते हुए जन-शक्ति संचय में लगे थे। उनका कार्य कठिन नहीं था। हाहाकार करती प्रजा को एक योग्य नेता ही चाहिये था। राज्य में विद्रोह अवश्यंभावी था। सोमेश्वर देव ने जनभावना का लाभ उठाते हुए उनके क्रोध को युद्ध में झोंक दिया। आक्रमण हुआ तो किले के भीतर रह रहे नागरिकों में हर्ष का संचार हो गया। मधुरांतक ऐसी सेना को साथ लिये कितनी देर लड़ सकता था जिनकी सहानुभूति और भरोसा उसने खो दिया था? युद्ध समाप्त हुआ। सोमेश्वर प्रथम (1069-1111 ई.) ने युद्ध में मधुरांतक का वध कर दिया तथा वे चक्रकोटक के निष्कंटक शासक बन गये।

- राजीव रंजन प्रसाद 
 ===========

No comments: