Tuesday, August 01, 2017

बल, छल, वीरगति और विजय (बस्तर: अनकही-अनजानी कहानियाँ, भाग – 45)


सत्ता को ले कर पारिवारिक खींचातानी, षडयंत्र, छल आदि एक दौर की सामान्य घटना हुआ करती थी। ऐसे में स्थिति तब अधिक जटिल हो जाती थी जब आंतरिक कलह का लाभ उठा कर निकटवर्ती राज्य आक्रमण कर दे। बस्तर में ऐसा ही एक समय तब आया जब भीषण अकाल पड़ा। यह दौर राजा वीरनारायण देव (1639-1654 ई.) के शासन का था। राज्य विपरीत परिस्थितियों से जूझ ही रहा था कि आक्रमण हो गया। चांदा के गोंड शासक बल्लारशाह के पास यह सुअवसर था कि वे बस्तर पर अपना अधिकार कर लें। पूरी ताकत से उन्होंने आक्रमण किया और भयावह युद्ध में बस्तर के राजा वीरनारायण देव वीरगति को प्राप्त हुए। इसके पश्चात भी युद्ध नहीं रुका और हार कर चांदा की सेना को पलायन करना पड़ा।    

युद्धभूमि में पिता की मौत के बाद उत्तराधिकार का संघर्ष उसके दो पुत्रों के बीच हुआ जिसके बाद वीरसिंह देव (1654-1680 ई.) ने सत्ता की बागडोर अपने हाँथ में ली। उन्होंने अपने समय में राजपुर दुर्ग का निर्माण करवाया था। वीरसिंह का समय भीजी जमीन्दारी के विद्रोह को शह दे कर बस्तर में अपना हस्तक्षेप कायम रखने वाली कुतुबशाही से निर्णायक छुटकारा पाने के लिये भी जाना जाता है। अपनी पुस्तक लौहण्डीगुडा तरंगिणी (1963) में महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव विवरण देते हैं कि राजा वीरसिंह ने अपने पिता की हत्या का बदला लेने के लिये चाँदा के राजा बल्लारशाह के विरुद्ध युद्ध किया तथा उसे अपनी आधीनता स्वीकार करने के लिये बाध्य कर दिया था। यह इति नहीं थी। अब बारी बल्लारशाह की थी जिन्होंने संगठित हो कर पुन: बस्तर राज्य पर आक्रमण किया। इस बार उसने छल से राजा के एक आदमी परसराम को अपने साथ मिला लिया था। परसराम ने राजा को कुसुम (भांग तथा दूध से बना तरल) पिला दिया। बेहोशी की हालत में युद्ध कर रहे राजा को कैद कर लिया गया और बल्लारशाह के सामने प्रस्तुत किया गया। राजा वीरसिंह को भांति भांति के कष्ट दिये गये। रोचक किम्वदंति है बस्तर के राजा के प्राण उसके सिर में थे इसी लिये अनेक प्रहार करने के बाद भी उन्हें मारा नहीं जा सका। प्रताडना से आहत राजा ने स्वयं अपनी मृत्यु का गुप्त रहस्य बल्लारशाह को बता दिया, जिसके बाद उनके सिर पर प्रहार किया गया, वहाँ से एक सोने की चिडिया उड कर निकल गयी तथा राजा की मृत्यु हो गयी (भंजदेव, 1963)। कथनाशय यह है कि अशक्त व बेहोश वीरसिंह की युद्ध भूमि में हत्या कर दी गयी थी। राजा की हत्या हो जाने के बाद भी इस युद्ध में बस्तर की सेना ही विजयी रहीं थी। 

- राजीव रंजन प्रसाद
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