Tuesday, August 08, 2017

कच्चा महल-पक्का महल (बस्तर: अनकही-अनजानी कहानियाँ, भाग – 52 )


राजा दलपत देव ने जगदलपुर राजधानी के स्थानांतरण के पश्चात जिस राजमहल का निर्माण करवाया वह काष्ठ निर्मित थी एवं उसकी छत पर खपरैल लगायी गयी थी। वर्ष 1910 के महान भूमकाल आंदोलन के पश्चात ब्रिटिश शासन को यह महसूस होने लगा कि राजमहल तथा प्रशासकीय कार्यालय  मजबूत हों एवं इसके लिये पक्का निर्माण कराया जाये। इसके लिये महल के साथ लगे लम्बे-चौडे प्रांगण को घिरवा कर ईँटों की ऊँची दीवार से किलेबदी की गयी। दक्षिण दिशा की ओर इस किले का मुख्यद्वार बनवाया गया। दोनों ओर विशाल सिंह की आकृतियाँ निर्मित की गयी जिसके कारण मुख्यद्वार का नाम सिंहद्वार पड़ गया। चार दीवारी की अन्य दिशाओं में भी प्रवेश द्वार बनवाये गये। सिंह द्वार से लग कर पूर्व की ओर रियासत की कचहरी के लिये कक्ष निर्मित थे। दरबार-हॉल को अस्त्र शस्त्रों और चित्रों से सुसज्जित किया गया। महल के सामने, बागीचे में अनेकों जलकुण्डों का निर्माण किया गया जिसमें सुनहरी और लाल मछलिया डाली गयीं। उद्यान को आधुनिकता देने के लिये सुन्दर युवती की मूर्ति स्थापित की गयी जिसके घडे से निरंतर जल गिरता रहता था। महल की पूर्व दिशा में हिरण और सांभरों को रखने के लिये लोहे के बाडे से घेर कर जगह बनायी गयी। स्थान-स्थान पर सीमेंट से बनाये गये जलकुण्ड थे जिनमें जानवरों के पीने के लिये पानी का निरंतर प्रवाह रखा जाता था। हाथीसाल, घुडसाल, बग्घियों को रखने के स्थल आदि का निर्माण महल परिधि में ही किया गया। अहाते के भीतर ही महल प्रबंधक तथा महल सुप्रिंटेंडेट के आवास बनवाये गये। महल की दीवारों से लग कर कई आउट हाउस थे, जिसमें राजकीय कर्मचारी रहा करते थे। राजा ने अपनी प्रतिष्ठा तथा शौर्य प्रदर्शन के लिये बाघ पाला, जिसे महल के सम्मुख ही पिंजरे में रखा जाता था। इसी दौर में मोटरगाडियाँ भी चलने लगी। परम्परागत हाँथी की जगह राजा के पास भी रोल्स रॉयस कार आ गयी थी। महारानी प्रफुल्ल कुमारी देवी  ने भी अपने शासन समय में राजमहल में कई बदलाव किये। पिता के बनवाये महल से जोड़ कर अपने रहने के लिये आधुनिक सुविधाओं से युक्त नया महल बनवाया। इस महल के भूतल में ‘बिलियर्ड्स हॉल’  बनवाया गया। महल के उत्तरी दरवाज़े से लगा कक्ष ‘डॉल हाउस’ था, जिसमें राजकुमार-राजकुमारियों के खिलौने रखे हुए थे (दो महल, डॉ. के के झा)। 

- राजीव रंजन प्रसाद 

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