वर्ष 1324, वारंगल से 200 घुडसवारों के साथ चालुक्य राजकुमार अन्नमदेव ने गोदावरी पार कर भोपालपट्टनम में प्रवेश किया। भद्रकाली संगम की ओर से नदी पार करने के पश्चात अन्नमदेव ने साथियों के साथ भोपालपट्टनम किले पर धावा बोल दिया। यह अप्रत्याशित था चूंकि दो ओर से पर्वत श्रंखलाओं से एवं दो ओर से इंद्रावती और गोदावरी जैसी विशाल नदियों के मध्य सुरक्षित यह किला लगभग अजेय माना जाता था। अन्नमदेव जब किले के भीतर दाखिल हुए तो उन्होंने पाया कि महल खाली था, नाग राजा अपने बन्धु-बांधवों के साथ दुर्ग से पलायन कर गया था। बिना रक्तपात के यह पहली विजय अन्नमदेव के हाथ लगी। विजित महल क्या था, कच्ची मिट्टी की दीवारें और खपरैल की छत। वे जान गये थे कि इस विजय में किसी खजाने को पाने की आस तो छोड़ ही देनी चाहिये।
सभी सैनिक तथा उपस्थित प्रजाजन भी तब आश्चर्य से भर गये जब राजा ने अपने पालकी उठाने वाले साथी नाहरसिंह भोई को भोपालपट्टनम का जागीरदार नियुक्त कर दिया। नाहरसिंह की इस नियुक्ति के पीछे अन्नमदेव के कई हित थे। पहला कि नाहर भी भोपालपट्टनम की प्रजा की तरह ही एक गोंड थे, दूसरा यह कि इसी तरह वे अपने शुभचिंतकों और विश्वासपात्रों को पुरस्कृत कर सकते थे। नाहरसिंह की स्वीकार्यता के पीछे एक किम्वदंती ने बडी भूमिका अदा की है। भोपालपट्टनम के जमीदार ‘भोई’ कैसे ‘पामभोई’ कहलाये इसके पीछे एक रोचक कहानी है। कहा जाता है कि अन्नमदेव जब अपने दल-बल के साथ गोदावरी नदी को पार कर रहे थे तब अचानक बहुत तेज हवा चलने लगी। पल भर में लगा कि सभी नावें डूब जायेंगी। हम सबने देखा कि वहाँ एक बहुत बड़ा सा पाम (अजगर) प्रकट हुआ था। नाहरसिंह ने भाले से आगे आ कर उस पाम का सामना किया और मार गिराया। उनकी इसी वीरता के कारण नाहरसिंह तथा उनके वंशजो को पामभोई नाम से जाना गया।
- राजीव रंजन प्रसाद
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1 comment:
Katwe bharat mata ki jai bol
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