tag:blogger.com,1999:blog-37624905.post6930076820620692674..comments2024-02-28T14:12:54.227+05:30Comments on सफर - राजीव रंजन प्रसाद: नक्सलवाद और महाराज प्रबीर चंद भंजदेव की हत्या: थोडा आज, कुछ इतिहास (“बस्तर का हूँ इस लिये चुप रहूँ” आलेख श्रंखला)राजीव रंजन प्रसादhttp://www.blogger.com/profile/17408893442948645899noreply@blogger.comBlogger8125tag:blogger.com,1999:blog-37624905.post-65203146676649767422008-08-05T10:17:00.000+05:302008-08-05T10:17:00.000+05:30राजीव जी!स्वतंत्रता-पूर्व के आदिवासी विद्रोहों का ...राजीव जी!<BR/>स्वतंत्रता-पूर्व के आदिवासी विद्रोहों का ज़िक्र इतिहास में बहुत संक्षेप में ही मिलता है, पर उतना भी इन तथाकथित असभ्य लोगों के बलिदान व जागरूकता का सशक्त प्रमाण देता है. हाँ, आज़ादी के बाद की इन दु:स्वप्नवत घटनाओं स मैं अब तक अनजान ही था जिनका उल्लेख आपने अपने लेख में किया है.<BR/>बस्तर की ऐतिहासिक व सांस्कृतिक विरासत की झलक दिखाते इस प्रभावशाली आलेख के लिये आप सचमुच बधाई के पात्र हैं.SahityaShilpihttps://www.blogger.com/profile/12784365227441414723noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-37624905.post-69793239797207067602008-07-16T12:53:00.000+05:302008-07-16T12:53:00.000+05:30राजीव जी बधाई स्वीकारें इस विचारोत्तेजक लेख के लिए...राजीव जी बधाई स्वीकारें इस विचारोत्तेजक लेख के लिए...<BR/><BR/>ऐसी संजीदगी आजकल मिलती नहीं देखने को...<BR/><BR/><BR/>अंगूठा छाप का नमन स्वीकार करें...अंगूठा छापhttps://www.blogger.com/profile/07215432736663219795noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-37624905.post-12920859627045789302008-07-15T15:22:00.000+05:302008-07-15T15:22:00.000+05:30राजीव जी, ऐसा आभास होता की एपी स्वयम भी राजपरिवार ...राजीव जी, <BR/>ऐसा आभास होता की एपी स्वयम भी राजपरिवार से ताल्लुक रखते हैं.. आपकी भावनाएं सम्मान योग्य ही नहीं बल्कि प्रेरणास्पद हैं. साथ ही उन्मुक्त लेखन प्रशंशनीय है. यह लेख न सिर्फ पात्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होना चाहिए बल्कि अनिवार्य रूप से पठनीय भी होना चाहिए..<BR/>आपकी मातृभक्ति को प्रणाम.Adminhttps://www.blogger.com/profile/13066188398781940438noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-37624905.post-55862708953426719282008-07-15T15:00:00.000+05:302008-07-15T15:00:00.000+05:30संजीव जी,आभार कि आपने इस आलेख को सराहा। यह आलेख के...संजीव जी,<BR/><BR/>आभार कि आपने इस आलेख को सराहा। यह आलेख केवल महाराज के पुस्तक पर आधारित नहीं है। साम्यवाद पर उनकी टिप्पणी यद्यपि उनकी पुस्तक से हूबहू मैने उद्धरित की है। मेरा सौभाग्य रहा है कि आदरणीय लाला जगदलपुरी जी का अपार स्नेह मुझे अपने छात्र जीवन में प्राप्त हुआ साथ ही साथ श्री राम कुमार बेहार जी जगदलपुर में ही इतिहास के प्राध्यापक थे जहाँ उनका सान्निध्य प्राप्त रहा। बहुत से नोट्स मैनें उसी दौरान बना कर रखे थे जो निजी अनुभवों और शोध के शब्द पा कर यह आलेख बने हैं। आदरणीय के. के. झा जी के शोधप्रबंध से भी मैने प्रेरणा प्राप्त की है। यथा संभव मेरा यत्न रहा है कि मैं इतिहास से छेड खानी न करते हुए अपनी बात रख सकूँ...इन सभी विद्वानों के शोध को इस आलेख के मूल में पाया जा सकता है।<BR/><BR/>***राजीव रंजन प्रसादराजीव रंजन प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/17408893442948645899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-37624905.post-35833186938336155452008-07-15T07:29:00.000+05:302008-07-15T07:29:00.000+05:30मात्रभूमि के प्रति आपका स्नेह और चिंता सराहनिए है ...मात्रभूमि के प्रति आपका स्नेह और चिंता सराहनिए है आपकी संवेदनाओं को नमनSajeevhttps://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-37624905.post-37880692325928892392008-07-14T18:40:00.000+05:302008-07-14T18:40:00.000+05:30बस्तर और उसकी विस्तृत जानकारी देने के लिए साधुवाद....बस्तर और उसकी विस्तृत जानकारी देने के लिए साधुवाद....<BR/>नीरजनीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-37624905.post-54562039099427836692008-07-14T17:12:00.000+05:302008-07-14T17:12:00.000+05:30बहुत ही सुन्दर सधे शव्दों में समसामयिक व विचारोत्त...बहुत ही सुन्दर सधे शव्दों में समसामयिक व विचारोत्तेजक प्रस्तुति के लिये बस्तरिहा भाई को बहुत बहुत धन्यवाद ।<BR/>यह सत्य है कि अब प्रत्येक गूंडाधूर को उठकर खडा होना होगा पर इनमें से ही किसी को जामवंत जैसे इनके सोये हुए आन को जगाना होगा ।<BR/>स्वतंत्र रूप से वैचारिक क्रांति लाने के लिए ऐसे लेखों को स्थानीय समाचार पत्रों में प्रकाशित भी होना चाहिए ताकि लोग किसी स्वतंत्र ब्यक्ति के अभिमत को स्वीकारें ।<BR/><BR/>महाराज प्रवीर चंद्र के जिस पुस्तक का आपने उल्लेख किया है उसका हिन्दी अनुवाद दो तीन अनुवादकों नें बाजार में प्रस्तुत किया है जिसमें से एक अनुवादक जिसको मैं पढा हूं, की प्रस्तुति तो केवल प्रायोजित जान पढती है, आप बस्तर के हैं इस कारण, मुझे विश्वास है कि आपने इन पुस्तकों से सच को ही चुन कर आत्मसाध किया होगा । यह आपके इस प्रस्तुति में स्पष्ट दृष्टिगत हो रहा है, पुन: धन्यवाद ।36solutionshttps://www.blogger.com/profile/03839571548915324084noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-37624905.post-12229797797401851002008-07-14T16:54:00.000+05:302008-07-14T16:54:00.000+05:30राजीव जीकाफी विचारोत्तेजक लेख लिखा है। अनेक स्थलों...राजीव जी<BR/>काफी विचारोत्तेजक लेख लिखा है। अनेक स्थलों ने दिल को छुआ है। प्रभावशाली भाषा से लेख अन्त तक रोचक रहा है।शोभाhttps://www.blogger.com/profile/01880609153671810492noreply@blogger.com